रूबी झा, बेगूसराय, सम्प्रति गुजरात।
गजल
आबए अछि मजा रसिक पर कलम चलाबए सँ
बनि गेल जे गजल हुनक चौअन्नी बिहुँसाबए सँ
प्रेम होए मे नहि लगैत छैक बरख दस बरख
भऽ जाइ छैक प्रेम बस कनेक नजैर झुकाबए सँ
जँ प्रेम मे कपट होए टूटितो नहि लागै छैक देर
जेना टूटि जाइ छैक काँच कनीके हाथ लगाबए सँ
जँ नहि बुझि पेलौं आँखिक कोनो इशारा कहियो अहाँ
आइए की बुझब आँखि सँ हमर नोर बहाबए सँ
ताग टूटल जोरबा सँ पड़ि जाइ छैक गीरह जेना
रूबी ओझरैब ओहिना बेर बेर प्रेम लगाबए सँ
(आखर -२०)
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