मनोज कुमार झा, जन्म- ०७ सितम्बर १९७६ ई., दरभंगा जिलाक शंकरपुर-माँऊबेहट गाममे। शिक्षा
- विज्ञानमे स्नातकोत्तर। लेखन: विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकामे कविता-आलेख
प्रकाशित। चॉम्सकी, जेमसन, ईगलटन,
फूको, जिजेक इत्यादि बौद्धिकक लेखक अनुवाद
प्रकाशित। एजाज अहमदक किताब ‘रिफ्लेक्शन ऑन ऑवर टाइम्स’
क हिन्दी अनुवाद प्रकाशित। सराय/ सी. एस. डी. एस. लेल ‘विक्षिप्तों की दिखन’ पर शोध।
शासक लोकनिसँ (बाढ़िक सन्दर्भमे)फूसि कहै छी -
बाढ़ि प्राकृतिक कोप थिक ।
वस्तुतः ई;
हमरा सभक सीना पर दागबा लेल
तोड़बा लेल हमर सबहक आत्मबल कें
लूटबा लेल हमर श्रम सिंचित संसाधन
अहाँ सभक शस्त्रागारक बेस जोरगर तोप छी ।
किन्तु जानू,
भूख लगला पर मनुख टूटबे टा नै करै छै,
लड़बो करै छै,
कते एफ.सी.आइ, कते बाजार समितिक
दुर्गद्वार तोड़बो करै छै।
रक्त केर जे बिन्दु खसै छै ऐ धरापर
ओ कतेको स्वप्नदर्शी रक्तबीज रचबो करै छै,
कोनो राजा, कोनो रानी
कोनो जैक वा कोनो जोकर
डरा कऽ वा हँसा कऽ
कतेक दिन धरि
लाखो करोड़ो पृथ्वी संततिकेँ कर्तव्यपथसँ विमुख राखत।
चूड़ा दही बेसी खेला सँ
शोणित ठंढ़ा कतौ भेलैए!
मानि ली, ई बात सत्यो
सत्य तँ इहो छै विज्ञानसम्मत
वस्तु जे जतेक ठंडा
वातावरण केर तापक असरि ओकरा पर
ओतबिये बेशी पड़ै छै।
तैं कहै छी कान दी
गंगा, कोसी, कमला केर संतति सभक हुंकार दिस
तात्कालिक लाभ-हानिक छोड़ि चिन्ता
आक्रोश-प्लावित भेला सँ पूर्वहिं
शासक लोकनि बाढ़िक निदानक करथु चिन्ता
लोक सभ चहुँ दिस कहै छै।
फुसि कहै छी
बाढ़ि प्राकृतिक कोप थिक।
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