Pages

Showing posts with label मिथिलेश कुमार झा. Show all posts
Showing posts with label मिथिलेश कुमार झा. Show all posts

Saturday, July 21, 2012

मिथिलेश कुमार झा- गजल



उन्नति केलक गाम आब शहर लगैए,
लोक-लोक मे भेद आ जहर बढैए ।
निधोख बुलै अछि चोर रखबार दम सधने,
औंघायल कोतबाल धरि पहर पडैए ।
निट्ठाह पडल अछि रौदी जजाति जरै अछि,
पानि ने फानय धार से छहर पडैए ।
अमावस्याक राति की इजोतक आशा,
सगरो पसरल धोन्हि दुपहर बितैए ।
अपनो गाँव मे लोक बनल अनचिन्हार सन,
अनटोला केर लोक देखि क’ कुकुर-मुकैर ।

मिथिलेश कुमार झा -खब्बरदार




हे यौ !
एहि महान जनतंत्रक नेता,
एहि देशक जनता
बुझि गेल अहाँक चालि- प्रकृति- फूटनीति,
गमि लेलक अहाँक
गामसँ गद्दीक धरिक
सस्त बेबहार____
बैसलाक धार;
तैं सरकार, खब्बरदार!
जनतंत्रक जनता केँ
बुझिऔ जुनि
निमूधन_____
शक्ति सँ हीन;
जनताक संगठित शक्ति
बनत प्रचण्ड बिहाडि
अहाँकेँ पछाडि
गढत इतिहास
रहत साक्षी धरा-आकाश !!