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Tuesday, January 15, 2013

सतबेध :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल

सतबेध

सत् केर शक्‍ति‍ जगैछ भूमि‍ रण
उठि‍-मरि‍, मरि‍ उठि,‍ उठि‍ कहै छै।
कुंज-नि‍कंुज पुरुष परीछा
असत्-सत् सुसत् बनै छै।
इत्‍यादि‍, आदिसँ दादी-नानी
सतबेध खि‍स्‍सा कहैत एली
वेद-पुराण सि‍र-सजि‍ मणि‍
दि‍न-राति‍ सुनबैत एली
भरल-पुरल पोथी-पुराण
सत्-बेध जि‍नगी भरल-पुरल छै।
कखनो जोगीक जोग बेधि‍
तीन सत् वाण रटै छै।
काल कुचक्र चक्र सुचक्र
वाण बेधि‍ मारैत रहै छै।
वाण वाणि‍ नारी-पुरुष संग
साड़ी शक्‍ति‍ सजबैत रहै छै।
मि‍थि‍ला मर्म माथ तखन
मथि‍-मथि‍ माथ मि‍लबै छै।
दान सतंजा बाँटि‍-बि‍लहि
जि‍नगी सफल करैत कहै छै।
चक्री-कुचक्री वाण बनि‍ वन
चालि‍ कुकुड़ धड़ैत एलैए।
जि‍नगी जुआ पकड़ि‍-पकड़ि‍
पछुआ पाट बि‍लहैत एलैए।
पाटि‍-पाटि‍ पटि‍या-पटि‍या
पटि‍या धरती बि‍छबैत एलैए।
नरि‍ गोनरि‍ गमार कुहू कहि‍
तर-उपरा रंग चढ़बैत एलैए।
चि‍क्कन-चुनमुन चुनचुनाइत देखि‍
लोल-बोल बति‍आइत एलैए।
मन-मानूख फुसला-पनि‍या
मनु-मानव कहैत एलैए।
बाणि‍ मोड़ि‍ पकड़ि‍ पग
जंगल नाच देखैत एलैए।
भ्रमर रूप सजि‍-धजि‍-धजि‍
भौं-आँखि‍ चढ़बैत एलैए।
फूल कमल बसोबारा कहि‍

कमल दहल दहलाइत एलैए।

दोबर-तेबर दस-बीस कहि‍

सत् शून्‍य भरैत एलैए।

सैयाँ-नि‍नानबे मंत्र रचि‍ बसि‍

अस्‍सी-खस्‍सी बनबैत एलैए।

बर्जित तन कहि‍-कहि‍

मानव-मन रचैत एलैए।

खस्‍सी-बकरी रूप देखि‍-देखि‍

मासु खून पीबैत एलैए।

लंका दर्शन पूर्व राम

वाण समुद्र पकड़ै छै।

सत्-बेध पाथर पकड़ि‍-पकड़ि‍

सेतु बान्‍ह बनबै छै। 

गुरुत्तर :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल

गुरुत्तर

गुरुत्तर भार भरैसँ पहि‍ने
गुरुत्तर पाठ पठैत पढ़ै छी।
सड़ि‍-सड़ि‍ सरि‍या-सरि‍या
सि‍र साटि‍ सजबए लगै छै।
बून-बून बुन्नी पकड़ि‍-पकड़ि‍
धड़ि‍-धड़ि‍ धारण करै छै।
धड़कि‍-धड़कि‍ धड़-धड़धड़ा
गति‍ गीत मीत गबै छै।
शि‍वगंगा पकड़ैसँ पहि‍ने
पथर-माटि‍ बनए लगै छै।
परि‍हास रचि‍-बसि‍ कैलाश
राति‍ शि‍व रचबए लगै छै।
एक-एक जोड़ि‍-जाड़ि‍ पजेबा
महल ताज सजबए लगै छै।
पकड़ि‍ बाँहि‍ अक्षर ब्रह्म
वन-उपवन सजबए लगै छै।
अक्षर-ब्रह्म मि‍लि‍ बैसि‍
शक्‍ति‍ शब्‍द सजबए लगै छै।

हि‍त-सहि‍त पकड़ि‍-पकड़ि‍

मुँह साहि‍त्‍य सि‍रजए लगै छै।

Thursday, December 27, 2012

समाज सजल :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


समाज सजल......

समाज सजल छै छि‍पाड़-उकट्ठी
छीप-उकठपना बेवसाय बनल छै।
रंग-बि‍रंग समाज गढ़ि‍-मढ़ि‍
रंग-रंग छीप कटैत रहै छै।
भाय यौ, रंग-रंग......।
आस-वि‍यास बनि‍ते जहि‍ना
चोर-माखन कृष्‍ण कहै छै।
गोप-गोपी बीच उमकि‍
कहि‍ उमकि‍ उकठपन कहै छै।
भाय यौ, कहि‍ उमकि‍......।
भावो लोक तहि‍ना भवए
मारि‍ सेन्‍ह काटि‍ कहै छै।

शास्‍त्री, शब्‍दशास्‍त्री कहि‍

कर्ता-धर्ता ब्रह्म कहै छै।

मीत यौ, कर्ता......।

Tuesday, August 28, 2012

कि‍छु ने बूझै छी :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


कि‍छु ने बूझै छी

के केकर हि‍त के केकर मुद्दै
दि‍न-राति‍ देखैत रहै छी।
गरदनि‍ पकड़ि‍ जे कानए कलपए
पकड़ि‍ गरदनि‍ तोड़ैत देखै छी।
कि‍छु ने बुझै छी।
हि‍त बनि‍ मि‍लि‍ संग चलैए
मुद्दै बनि‍-बनि‍ लड़ैत रहैए।
सोझमति‍या चालि‍ पकड़ि‍-पकड़ि‍
झाँखुर-बोन ओझराइत रहैए।
डारि‍-पात देखैत रहै छी
कि‍छु ने बुझै छी।
छत्ता-मधु दुनू बसि‍-बसि‍
वि‍ष मधु गढ़ैत रहैए।
हि‍त मुद्दै बनि‍-बनि‍ दुनू
राति‍-दि‍न झगड़ैत रहैए।
देखि‍ झगुंंता पड़ल रहैए छी
कि‍छु ने बुझै छी।
संग मि‍लि‍ पाथर तोड़ए जे
पाथर ऊपर फेकैत रहैए।
पाथर मन गढ़ि‍-मढ़ि‍
पाथर बूझि‍ देखैत रहैए।
पथराएल पथ देखैत रहै छी
कि‍छु ने बुझै छी।
आगि‍ चढ़ि‍ अन्न जहि‍ना
पथरा पाथर बनैत रहैए।
जीवन दाता कुहुकि‍-कुहुकि‍
पेट पाथर बनैत रहैए।
वि‍षमि‍त भेल बि‍सबि‍साइत रहै छी
कि‍छु ने बुझै छी। 

दि‍न-राति‍क खेल :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल

दि‍न-राति‍क खेल

अपने हाथक खेल मीत यौ
अपने हाथ खेल।
संगे-संग दुनू चलैए।
इजोत-अन्‍हार बनैत रहैए।
हँसि‍-हँसि‍ कानि‍-कानि‍
पटका-पटकी करैत रहैए।
एके गाछक डारि‍ छी दुनू
सुफल-कुफल फड़ैत रहैए।
रस रंग सुआद गढ़ि‍-गढ़ि‍
तीत-मीठ बनबैत रहैए।
अपने हाथक खेल मीत यौ
संगे-संग खेलैत रहैए।
लपकि‍-लपकि‍ कतौ-कतौ
इजोत-अन्‍हार दबैत रहैए
पीट्ठी चढ़ि‍ पीठि‍या-पीठि‍या
एेरावत सजबैत रहैए।
तँए कि‍ अन्‍हार हारि‍ मानि‍
हरदा कहि‍यो कबूल करैए।
जहि‍ना झपटि‍ बि‍लाई बाझकेँ
जि‍नगीक खेल देखबैत रहैए।
अपने हाथक खेल मीत यौ
संग मि‍लि‍ संगे चलैए।
मंत्र एक रहि‍तो दुनूक
वि‍धा दू कहबैत चलैए।
वि‍धि‍-वि‍धान रचि‍-बसि‍ दुनू
गद्य-पद्य गढ़ैत रहैए।
चढ़ि‍ गाछ तनतना-तनतना
गीत-कवि‍त्त सुनबैत रहैए।
ताना दऽ दऽ वि‍हुँसि‍-वि‍हुँसि‍
मारि‍ तानि‍ हँसि‍-हँसि‍ कहैए।
एके गाछक खेल मीत यौ
संगे मि‍लि‍ दुनू खेलैए।
बजा पीहानी नाचि‍-नाचि‍

रंगमंच दुनि‍याँ सजबैए।

कंठ कोकि‍ल कवि‍त्त कवि‍

कवि‍काठी बजबैत रहैए।

कतौ ने कि‍छु छै दुनि‍याँमे

मन मानव गढ़ैत चलू।

मानव मनुख खरादि‍-खरादि‍

राति‍-दि‍न बनबैत चलू।

अपने हाथक खेल मीत यौ

हाथ-हथि‍यार बदलैत चलू।

उठी-बैसी :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


उठी-बैसी

हमर तेही मे नाम, हमर तेही मे नाम।
हमरा उठलेसँ काम, हमर बैसलेसँ काम
हमर तेहीमे नाम......।
उठी लेब कि‍ बैठी, बाजू-बाजू धड़-धड़ाम
उठी लऽ जँ बैसब, आ कि‍ बैठी लऽ जँ उठब
छुबि‍ते भरब पद पराम
हमर तेहीमे नाम, हमर तेहीमे काम।
खेल खेलाड़ी खेलि‍ खेल

बाल-बोध लि‍खबै छै नाम

खेल जि‍नगीक खेला-खेला

मृत-अमृत पाबि‍ सूरधाम।

हमर तेहीमे नाम हमर तेहीमे काम

हमरा उठले से काम, हमरा बैसले सँ काम।

मीत यौ, अपने पाछू :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


मीत यौ, अपने पाछू......

अपने पाछू बौआइत रहै छी
मीत यौ, अपने पाछू बौआइत रहै छी।
दि‍न-राति‍ ढहनाइत रहै छी
राति‍-दि‍न गनहाइत रहै छी
अपने पाछू बौआइत रहै छी
मीत यौ......।
पछुआ बनि‍ पछुआर पहुँचि‍ते
पेट-पीठ, पाँजर देखै छी
हड्डी छाती छि‍टैक‍-सि‍सैक
पखुड़ा बनि‍ सूर-तान भरै छी

पखुड़ा बनि‍ सूर-तान भरै छी

मीत यौ, अपने पाछू बौआइत रहै छी।

जुआ-जुआ, जुआ-जुआ

नांगड़ि‍ ऐँठि‍ चलैत रहै छी

लाद ऊपर लादि‍-लादि‍

टूटि‍-टूटि‍ गीरह बनैत रहै छी

मीत यौ, अपने पाछू बौआइत रहै छी

अपना के अप्‍पन बूझि‍-बूझि‍

अपने पाछू ओझराएल रहै छी

अपनापन भाव बि‍नु बुझि‍तो

अगुआर-पछुआर नाचि‍ रहल छी।

मीत यौ, अपने पाछू......।

यार यौ, गड़ि‍-मुड़ि‍या :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


यार यौ, गड़ि‍-मुड़ि‍या......

गँड़ि‍-मुड़ि‍या बोझ पड़ल छी
यार यौ, गँड़ि‍-मुड़ि‍या बोझ बन्‍हल छी।
पबि‍तो धार घास बनि‍-बनि‍
बन्‍हैक लूरि‍ गढ़ैत रहै छी
बाल-मन कि‍छु ने बुझै छी
पछुआ रूप सजैत चलै छी
यार यौ गड़ि‍-मुड़ि‍या बोझ बन्‍हल छी।
तहक-तह, तहि‍या-तहि‍या
पाँजक-पाँज पड़ल रहै छी
केकरो छीप केकरो नांगड़ि‍
गोर गोरथारी बनल रहै छी।
भयार यौ, गोरथारी बनल रहै छी।
गँड़ि‍-मुड़ि‍या बोझ पड़ल रहै छी।
गँड़ि‍-मुरहा घर बनि‍-बनि‍
गँड़ि‍-मुरहा चालि‍ चलैत रहै छी
गँड़ि‍-मुड़ि‍या गीत गाबि‍-गाबि‍

चालि‍ कोइली सीखैत रहै छी

पार्टनर, अहींकेँ कहै छी

गँड़ि‍-मुड़ि‍या बोझ बन्‍हैत रही छी।

धड़मक फूल :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


धड़मक फूल......

धड़मक फूल फुलेबे करै छै
बनि‍ फुलबाड़ी सजबे करै छै।
धाम-काम बनबे करै छै।
भीड़-कुभीड़ बीच बीचमानि‍
स्‍वर शंख उठबे करै छै।
शंख स्‍वर उठबे करै छै।
धड़मक फूल......।
धड़ अनेको धड़-चालि‍ अनेको
रूप कृष्‍ण कहबे करै छै।
बानि‍ पकड़ि‍ बीअनि‍ बदलि‍
साँस-हवा भरबे करै छै।
धड़मक फूल......।
नाओं हजरि‍या रचि‍-रचि‍ बसि‍

राति‍-दि‍न जपि‍ते रहै छै।

कुरू-पाण्‍डु बीच बसि‍ कृष्‍ण

नाद-शंख भरबे करै छै।

धड़मक फूल......।

कि‍छु ने करै छी :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


कि‍छु ने करै छी......

कि‍छु ने करै छी, मीत यौ
कि‍छु ने करै छी।

गेड़ू-चौक मारि‍ गनगुआरि‍ बनि‍

दि‍न-राति‍ रमल रहै छी।

मीत यौ कि‍छु ने करै छी।

जरि‍-मरि‍ गेल मन-कामना

समए संगम संग रमल छी

मीत यौ कि‍छु ने करै छी।

बोनक बाट आगू छै

उत्तरे-दछि‍ने धार बहल छै

घटि‍-घटि‍ घटि‍या घाट बनि‍

घोंटे-घोट पीबैत रहै छी

मीत यौ कि‍छु ने करै छी

ससरि‍-ससरि‍ ससरति‍ रहै छी

गाछ उतरि‍ धरती पकड़ि‍

लछमी-नाग कहबैत रहै छी

मीत यौ कि‍छु ने करै छी।

वि‍षय दस :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


वि‍षय दस......

वि‍षय दस ि‍सलेबस प्रवेश
दसो दि‍शा देखैत रहै छै।
त्रि‍भूज-ज्‍यमि‍ति‍ तहि‍ना
गीत व्‍यास गबैत रहै छै।
वि‍षय दस......।
सून अप्‍पन हि‍स्‍सा कहि‍-कहि‍
ठेहुन रोपि‍ अड़ल रहै छै।
अंकसँ हि‍साबो तहि‍ना
रथ जि‍नगी धि‍चैत चलै छै।
रथ जि‍नगी......।
आगू भलहि‍ं काटि‍-छाँटि‍

घटबी घाट बढ़ैत चलै छै।

होइत-हबाइत धकि‍या-धुकि‍या

हि‍स्‍सा अपन कहबैत चलै छै।

हि‍स्‍सा अपन.....।

आश प्रेम संग :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


आश प्रेम संग......

आश प्रेम संग झूि‍म रहल छै
लाल टमाटर बाजि‍ रहल छै।
आश प्रेम......।
वन बीच सन्‍यासी जहि‍ना
झींक दऽ दऽ जात नचबै छै।
नि‍आस कहाँ छोड़ि‍ संग
चि‍क्कस बनि‍-बनि‍ भूमि‍ भरै छै।
आश प्रेम......।
लाल टमाटर बनि‍ सन्‍यासी
खटमीठ रूप धड़ैत रहै छै।
नै मीठ तँ खट्टो नहि‍येँ
अपन नाओं सुनबैत कहै छै।
आश प्रेम......।
गीत गीता गाबि‍ सन्‍यासी
भगवत भजन करैत रहै छै।
सबूर पाबि‍ सबर सबरी
मरि‍तो राम एबे करै छै।

आश प्रेम संग......।

मीत यौ, देहक पानि‍ :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


मीत यौ, देहक पानि‍.......

मीत यौ, देहक पानि‍ तखन फुलाइ छै
कोढ़ी बनि‍ काज रूप लगै छै।
देहक पानि‍ तखन फुलाइ छै।
कोढ़ि‍ये ने फुलो-फड़ो संग
बाँहि‍ पकड़ि‍ संकल्‍प कुदै छै।
देहक पानि‍.....।
जाधरि‍ मन संकल्‍पि‍त नहि‍
ताबे केना उद्देश्‍य कहबै छै
संकल्‍पे ने तन-मन बीच
सीमा दइत डेग बढ़बै छै।
मीत यौ, देहक पानि‍.....।
काम-धाम जहि‍ना बनै छै

तहि‍ना ने कर्मो-धर्म कहबै छै

धर्मे ने धारण करैत

पथ-पानि‍ चढ़बैत चलै छै।

मीत यौ, देहक पानि.....।

जाल समाज :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


जाल समाज......

जाल समाज महजाल बनल छै
हाना बनि‍ परि‍वार सजल छै।
जाल समाज महजाल बनल छै।
बि‍नु नाप हाना बनल छै
हाना मध्‍य खाना सजल छै।
हाना बूझि‍ खाना लपकि‍
खानामे जा-जा फँसै छै।
मीत यौ, जाल समाज.....।
जान गमाएब खेल खेलि‍

बचैक नहि‍ उपाए करै छै

ऊपर कूदि‍-कूदि‍ फानि‍ चाहि‍

गोरि‍या-गोरि‍या गुहारि‍ करै छै।

मीत यौ, जाल समाज.....।

कोढ़ पकड़ि‍ :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


कोढ़ पकड़ि‍......

कोढ़ पकड़ि‍ कोढ़ी कहै छै
कोंढ़ि‍या कोढ़ पकड़ने छै।

केना कऽ फड़बै-फुलेबै
रेहे-देहे पकड़ने छै।
कोढ़ पकड़ि‍.....।
देखबोमे नहि‍ देख पड़ै छै
सुनबोमे नहि‍ सुनि‍ पबै छै।
टीश-पीड़ा टीशा पीड़ा
घोर-घोर मन बनौने छै।
कोढ़ पकड़ि‍.....।
नहि‍ कहि‍यो फड़बै-फुलेबै

झखि‍-झखि‍ आशा तोड़ने छै।

सकारथ भऽ अकारथ बनि‍-बनि‍

दि‍न-राति‍ अनि‍याय करै छै।

कोढ़ पकड़ि‍.....।

दीनक दि‍न केना :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


दीनक दि‍न केना......

दीनक दि‍न केना कऽ चढ़तै
मन कहाँ कहि‍यो मानै छै।
रतुके काजे दि‍नो काटि‍-खोंटि‍
बढ़ती कहाँ तानि‍ पबै छै।
दीनक दि‍न केना.....।
बि‍नु तनने घोकचि‍-मोकचि‍
जाड़ माघ अबैत रहै छै।
चैतक चेत चेतौनी चेति‍
सि‍र जेठ धड़ैत रहै छै।
दीनक दि‍न केना.....।
तीन जेठ एगारहम माघ

तीनू लोक देखैत सुनै छै।

देह-पसेना सुरकि‍ चाटि‍

माघे ने माघो कहबै छै।

दीनक ि‍दन केना.....।

सुखले मे सभ :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


सुखले मे सभ......

सुखले मे सभ पि‍छड़ि‍ रहल छै
मुँह-कान सभ तोड़ि‍ रहल छै।
सूखल जानि‍ पएर जतऽ रोपै छै
काह-कूह सभ ततऽ जमल छै।
सुखले मे सभ.....।
सूखल धरती जतए पड़ल छै
झल-फल नजरि‍ ततए जाइ छै।
सुखले मे सभ......।
अन्‍हर-जाल फरि‍च्‍छ मानि‍ बूझि‍

भोर-भुरुकबा सूर्य बुझै छै।

सुखले मे सभ......।

भूत बनि‍ भुति‍आएल :: जगदीश प्रसाद मण्डल


भूत बनि‍ भुति‍आएल......


भूत बनि‍ भुति‍आएल छी
मि‍त यौ बनि भूत भुति‍आएल छी।
संगे-संग जगलौं
संगे-संग उठलौं
संगे-संग चालि‍ चलि‍
संगे हेराएल छी।
संगि‍या मरि‍ गेल
हम भुति‍आएल छी।

केकरा कहबै भूत भवि‍ष्‍य
वर्त्तमान छि‍ड़ि‍आएल छै।

रग्गर बि‍च फक्कर बनि‍

लाजे-पड़ाएल छै

लाजे पड़ाएल छै।

भूत बनि‍ भुति‍आएल छै

बनि‍ भूत भुति‍अाएल छै।

गुमकीमे बौआए :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


गुमकीमे बौआए......

गुमकीमे बौआए रहल छी
औल-बौल टौआए रहल छी।
गुमकीमे..........।
कखनो अन्‍हर-बि‍हारि‍ देखै छी
झाँट-पानि‍ बि‍च पड़ए लगै छी।
गुमकीमे............।
घाम-पसि‍ना बहि‍ रहल छै

आश-ि‍नराश चलि‍ रहल छै।

धक्कम-धुक्कम चलि‍ रहल छै

औलाइत-बौलाइत मन कहै छै।

गुमकीमे..........।

बैसले-बैसल नाचि :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


गीत-

बैसले-बैसल नाचि‍ रहल छै
गुड़-चाउर मन फाँकि‍ रहल छै।
सि‍सकैत-सि‍हरैत कतौ देखि‍
संग मि‍लि‍ कऽ कानि‍ रहल छै
बैसले-बैसल.......।
उफनैत-उधि‍याइत धार देखि‍

संग मि‍लि‍ कऽ दाबि‍ रहल छै।

घट-घट घाट बना-बना

धार-वि‍चार बहा रहल छै।

बैसले-बैसल.........।