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Tuesday, September 4, 2012

बतहिया- सुबोध झा


सुबोध झा (१९६६- ), पिता श्री त्रिलोकनाथ झा
बतहिया
साँझ भेलै भोर हेबे करतै।
आँखि छै नोर हेबे करतै।।
पिया विरह मे छै मोन दग्ध।
की करतै मनःरोग हे
बे करतै।।
आब अ
नो सभ त कहै छिऐ ओकरा विक्षिप्त।
ओकर मोन
नै भऽ सकलै कहियो प्रेम सँ तृप्त।।
आँखि जोहैत छै बाट सदिखन।
मोन पड़ै छै बीतल दिन भरि क्षण।।
हमरा
नै अछि आशा घूरिकेँ औतै ओ।
फेर सँ ओकर प्रेमक दीप जरौतै ओ।।
मुदा ककरा बूझल छै ओहो घूमि रहल अछि भेल विक्षिप्त।
के मिलौतै दुनूकेँ सभ अछि अपनहिं आप मे लिप्त।।
ककरा छै एकरा दुनूक लेल खाली सम

सभ लागल अछि खाली करबामे धन संचय।।
जीअब त
देखबै कतेको सामाजिक अन्याय।
माय बाप भा
बहिन केओ नै हेतै सहाय।।
हे समाजक कर्ता धर्ता छो
ड़ू ई ताण्डव नृत्य ओ कुकर्म।
जीबऽ दियौ सभकेँ अपना ढंगसँ आ करू सुकर्म।।
सभ कहैत अछि भऽ गेलै आब प्रजातन्त्र।
हमरा जनें ई थीक पाइ
लाक षडयन्त्र।।
पाइ
लाक षडयन्त्र पाइ लाक षडयन्त्र।।।।