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Tuesday, September 4, 2012

किछु क्षणिका- अनुप्रिया योग


अनुप्रिया योग, सुपौल, सम्प्रति- दिल्ली।
किछु क्षणिका

आकाश गंगाक
गर्भमे किलकैत
नवजात पृथ्वी

भरल अछि
सौन्दर्य आ जीवनसँ
प्रकृतिक छवि

सूर्यक रथ
बढ़ि रहल यऽ
हिम शृंखलासँ

 प्रकृति केर
अद्भुत अनुभव रूप
मन मुग्ध-मुग्ध

टूटल यऽ कोनो तारा
या प्रकाश स्तम्भ
प्रकृति केर सभ लीला

ई मेघ नै
मनक उड़ान छी
नीलाम्बरमे

जीवनक
अद्भुत संघर्ष
अकथ कथा

धर्म संस्कृति
अभिनव महान
भरत जयगान

मध्यम वर्गक
घर कही या, नीन्दमे
हँसैत बालक
१०
संस्कृति
केर रक्षामे
उतरल नव पीढ़ी
११
अपन संस्कृति
केर स्वागतमे
नव पीढ़ी
१२
अमृत धार
जीवन अद्भुत
हँसैत जीवन
१३
छठि पर्वमे
सूर्य आराध्य
अद्भुत अछि श्रद्धाक भाव
१४
मुग्ध करैत
प्रकृतिक रूप
जीवन युक्त
१५
ई मिलन अछि
भिन्न संस्कृति
भिन्न पहिरावा केर
१६
हरियर कचोर
जीवनक पल्लवित
रंग रूप
१७
उगि आएल
मेघक गाछ
श्यामापर
१८
डूबि रहल
उम्मीद
पानिमे
१९
डूबि रहल उम्मीद केर नाव
पानिमे
२०
पहाड़क कोरा
मेघक छाह
हँसैत गाम
२१
कोमल पाँखि
अथाह
नीलाभ
२२
थाकल तन
भीतर प्यास
मनमे मुदा भरल आश
२३
जमघट मेला
रोजी-रोटी
खूब जिन्दगी
२४
स्वप्नसँ भरल
मनक उड़ान
अथाह गगनमे
२५
एक दोसराक अंकमे
लजा रहल यऽ श्याम
आ हँसि रहल यऽ गगन
२६
ठोप-ठोपमे
जीवन
बसैत अछि
२७
नंग धरंग जीवन केर छवि कहू
या जीवन केर आसमे
नेनपन केर प्रश्न
२८
सूर्यक आभामे
मंजिल देखा गेल
जीवन केर नव रूप
२९
सूर्यक आभामे
मुखरित
जीवन

Saturday, April 7, 2012

देह -अनुप्रिया


देह


अहां हमरा गहय चाहैत छलहुँ
अपन बाँहि मे
आ हम चाहैत छलहुँ
अहाँक संग

अहाँ छूबय चाहैत छलहुँ
हमरा
आ हम अहाँक हाथ पकड़ि
पूरा करय चाहैत छलहुँ
जीवन-जतरा

हमरा लेल तेँ अहां
हमर आत्मा बनि गेल छलहुँ
मुदा अहांक लेल
हम- मात्र एकटा देह ।

भगजोगनी- अनुप्रिया


भगजोगनी

हमरा लग ने दीप अछि
ने बाती
आर ने तेल
तैयौ जरौने छी
दीप उमेदक अपन
आँखि मे

किछु एहेन घर
किछु एहेन डगर
किछु एहेन बस्ती जतय
ढीठ भ’ जीबैत अछि अन्हार
ओतय देखने छी हम
टिमटिमाइत भगजोगनी
जेना अपन मिरियैल इजोत सं
ओ काटि देबय चाहैत होई
घुप्प अन्हार

वैह भगजोगनी
हमरा मन मे
गहैत अछि विश्वास
जे आब एतहु
मनायल जायत दिवाली

आउ झक इजोत लेल
एक-एक टा दीप जराबी ।