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Tuesday, April 10, 2012

डॉ शंभु कुमार सिंह - अतीत



अतीत छल, थिक वर्तमान
आबो सम्हारऽ
चाहै छी जे काल्हि थिक
अतीतक पन्ना पढ़िकए बुझाइत अछि
ओ नीक-बेजाए, अल्हड़, बीहड़
जे किछु छल
अपना समयक साक्षी
आ आबऽबला काल्हिक लेल
ज्ञानक सागर छल
अतीत जे लेलक
ओ स्मृति थिक
जे देलक
ओ स्थिति थिक
ई वर्तमानक बात थिक
जँ स्मृति आ स्थितिक मंथन करी
तँ काल्हुक भविष्य....
भऽ सकैछ नीक।

आस
कटि जाएत राति
फेर आओत दिवस
लऽ संग रितु पावन पावस
छी एखन विवश!
छी तममे समए विषममे,
झंझावात भरल अछि हमरा जीवनमे
भऽ मुखरित एहि असार संसारमे
नित नव भाव-उल्लास
संजोगने मोनमे आस
छी आसमे आबऽबला काल्हिक
सत्य, स्वच्छन्द, कर्मफलदायी
समय चपलक!

डॉ शंभु कुमार सिंह - लोरी


तू लोरी गा हम सूति जाएब
माए लोरी गा हम सूति जाएब
लय नहि छौक तँ की
स्वर तँ छौक?
छी भूखल, देह अछि काँपि रहल
ठंढ़ासँ
ई माया नगरी अछि,
हमरा बसन नहि अछि
तँ की भेल जऽर तँ अछि?
माए! हे देखही..
ओकरा गाड़ीमे
उजरा कुकुर अछि घूमि रहल
खा दूध-भात
ई पशु जाति
किछु खाइत अछि
आ किछु करैत अछि जियान
तू मानव छेँ
करैत छेँ श्रम
दिन रातिक श्रमक ई फल छौक
तोहर नेना अन्नक लेल बेकल छौक
कलुष-भेद-तम-निअम विषमक
ई धार आब नहि बहतैक
हमर जाति
ई कुठाराघात
काल्हिसँ नहि सहतैक
टूटि जेतैक एक्कर विषदंत
भऽ जेतैक काल्हि एक्कर अंत
अछि अस्त्र नहि
मुदा हाथ तँ अछि?
आ फेर उपर ‘हर’ तँ छथि?
तू लोरी गा हम सूति जाएब
माए लोरी गा हम सूति जाएब।