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Tuesday, April 10, 2012

धर्मेन्द्र विह्वल- ओकरा सभक अन्त होबाक चाही



काल्हिधरि उजाड रहल गाछमे
छोट छोट पल्लव सभ
अंकुरित भेल अछि
ओ सभ तोहर अनुमतिए बिना
अंकुरित भऽ गेल
आब सौंसे गाछ पसरि रहल अछि
ओ सभ सामन्त अछि
सामन्तक अन्त करबाक चाही
सभ गाछकेँ
जड़िसँ काटि देबाक चाही ।
नदी सभमे
वर्षोसँ पानि बहि रहल अछि
बहैत बहैत एक ठामसँ
दोसर ठाम जाइत अछि
ओ सभ तोहर अनुमतिए बिना
बहैत अछि
ओ सभ साम्राज्यवादी अछि
साम्राज्यवादीक अन्त करबाक चाही
सभ नदीक
जलप्रवाहकेँ रोकि देबाक चाही ।
चहुदिसक वातावरण
बयारयुक्त अछि
बयारो अनेरे बहैत अछि
एकर कोनो सीमा नहि छैक
कतहुसँ कतहु पहुँचि जाइए
ओ सभ तोहर अनुमतिए बिना बहैत अछि
ओ सभ विस्तारवादी अछि
विस्तारवादीक समूल नष्ट होएबाक चाही
बयारकेँ बहबासँ रोकबाक चाही।
ओ सभ साँच बजैए
ओकरा सभकेँ झूठ बाजऽ नहि अबै छै
जे देखैए से कहैए
ओ सभ तोहर अनुमतिए बिना
निरन्तर बजिते जा रहल अछि
ओ सभ युगविरोधी अछि
युगविरोधी सभक अन्त करबाक चाही
ओकरा सभकेँ बजबासँ रोकबाक चाही
ओकरा सभकेँ
सभ दिनक लेल चुप कऽ देल जेबाक चाही ।

धर्मेन्द्र विह्वल - ब्रम्ह्बाबाक अवसान



सरधुवा जोनिडाहा
जानि ने कतऽसँ फेर आबि गेल
लाठि टेकि चलैत
एकटा वृद्धाक मूहसँ
अस्फूटरुपेँ किछु अक्षरक
उच्चारण भेलै
कहुना सही
हम अपना मोने जीबैत तँ छलौं
मुदा, मुदा ई जोनिडाहा
ओकर मूह अनायास बन्द भऽ गेलै,
ओ वृद्धा जे पागलि
घोषणा कऽ देल गेल छलि
ब्रम्हकथानक डिहवारक पँजरा
ओकर आश्रय बनल छल
सभ किछु नष्ट भऽ गेल
आब ई ब्रम्होल बाबा
रहताह कि नहि ?
ओकर मूहक बनैत बिगडैत आकृतिसँ
ओकर चिन्ताबक पराकाष्ठाक
अनुमान कएल जा सकैत अछि
एखन धरि तँ ब्रम्ह्बाबा जीवित छथि
आब रहताह कि नहि ?
वृद्धाक आँखि घोकचैत जा रहल छै ।