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Tuesday, April 10, 2012

शेफालिका वर्मा- वचनक मास


अहाँक वचन हम आएब
हमर  आँचरमे इन्द्रधनुष  उतरल
सतरंगी भावनामे
मोनक रस रूप पसरल
आ क्षणपर क्षण कपूर जकाँ उड़ैत रहल
कैलेंडरक पन्ना फाटैत रहल
वचनक ओ मास कहियो नहि आएल
कहियो नहि आएल
जरैत सिगरेट जकाँ मोन हमर
दहैत रहल
कामना छाउर बनैत रहल
मृत्युक महक पसरैत रहल
वचनक ओ मास कहियो नहि आएल
कहियो नहि  आएल............

शेफालिका वर्मा- प्रसंग चाहे जे होइ


सम्बन्धक सीमामे सिनेह नहि
स्वार्थ बसैत अछि, मानवक  भेखमे
राम नहि रावण घुमैत अछि ...
स्वार्थपर जोड़ल संबंधक देवारक   
प्लास्टर झरि जाइत छैक  
विश्वासक कांच रंग कालक
रौदमे उड़ि जाइत छैक ....
रंगहीन गंधहीन निर्जीव
रिस्ताक लहासकेँ क्रोंस जकाँ 
अपन कान्हपर उठेनाइ
अनुचितमे अपन उचितकेँ मारनाइ
ई परिभाषा रिश्ता नाताक खूब अछि ...........

नाम केओ लाख राखि  लैक
राम सन राजा
लक्षमण सन भ्राता
सुग्रीव सन दोस्त
नहि तँ भेल अछि आ नहि तँ होएत
हंह ...
सीता मौन मूक भए
अग्निपरीक्षामे जरबाक परम्पराक
जन्म देलन्हि आ तैं सीता आइयो
जरि रहल अछि
प्रसंग चाहे जे होए ..............

शेफालिका वर्मा- अनबुज्हल



अंतरिक्षसँ अकाससँ अन्तरक उजाससँ
स्वरपर स्वर आबि रहल अछि
कानमे गूंजि रहल अछि................
हम अहाँकेँ देखने छी
मुन्हारि संझाक रुसल बेरियामे ..
जखन अन्हार किरणक छातीसँ
प्रकाश मचोरि पिबैत अछि
अधिककाल अहाँकेँ देखने छी
गुज्ज गुज्ज अन्धकारमे
इजोतक निर्माण करैत
हतास निरास मानवकेँ जीवनक वरदान दैत :
अहाँक अंतर्मन
अबाध लेखनी थिक
अनकहल परिभाषाकेँ जाहिसँ आकार भेटल
शब्दकेँ अर्थ भेटल
स्वप्नक सिनेह भेटल
तैयो
अहाँकेँ बुझबाक प्रयत्न केओ नहि केलनि
त्यागमयी बनि पीबि रहल छी विष
बाँटि रहल छी अमृत अहाँ
शांतिप्रिय शांतिप्रिय 

शेफालिका वर्मा - बाजी



ई हमर देश थीक
एहिठाम मानव की मानवकेँ चीन्हि सकल?
तरहत्थीपर टघरैत पारा सन मानवक मोन
स्थिरता नहि।

आदमीक जंगल बढ़ि रहल
गाछ बृच्छ कटि रहल
कोनो बाट घाट, कोनो राह हाट
मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारा
वा
चर्चक हो वोसारा
भीड़क अन्त नहि...
की पएरे की रिक्शा
की कार की स्कूटर
तरहक सवारीपर भगैत
उजहिया चढ़ल मानवक अन्त नहि...
ई दिशाहीन भीड़:
भूत भविष्यक चिन्ता नहि
वर्तमानसँ संतुष्टो नहि
भागि रहल निरन्तर
भागि रहल जन प्रवाह...
संवेदना तितीक्षा
नहि भेटत शब्दकोशोमे जल्दी
मानवक आवश्यक आवश्यकता सन
शब्दकोशो आकार पाबि रहल
निरर्थक शब्द संसारक प्रयोजने की?
कागदोक दाम तँ बढ़ि गेल
पत्र-पत्रिका छापत कोना
प्रदूषणक हल होएत कोना
जे एकटा गाछ रोपल जाइत अछि तँ
सए नेना जनम लए लैत अछि
ऑक्सीजन पाओत कत्तऽ मेनिंजाइटिस
एड्स स्पोंडीलाइटिस सन अनचिन्हार बीमारी लोककेँ मारए लागल
एतबहि नहि
दहेजक बढ़ैत रोग बेटीक बापकेँ
ढाहए लागल
ओ दिन दूर नहि अछि जखन
मानव मानवकेँ मारि खाए लागत
आ एकटा प्रश्न तखनो समस्या बनल रहि जाइत अछि
मानवक बेशी वृद्धि की
महगी क..?
बाजी दुनूमे लागल अछि
के कतेक आगू
केकर कतेक जोर...????
राम कतए चलि गेल...