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Tuesday, April 10, 2012

सच्चिदानन्द ‘सौरभ’ - अन्हारक संग रहैत रहैत



चहुँ दिस पसरल अछि
घुप्प अन्हार
अन्हारमे
बाट हेरबा लेल
दऽ रहल छी हथोरिया
मुदा, नहि भेटय अछि
बाट
आ नहि भेटय अछि
अन्हारक ओरछोर
कतबो नोचै छी
अपन देहहाथ
वा पीटै छी कपार
रहै छी सदिखन
ओतय ठाढ़
जतय अछि अन्हारक
एक छत्र राज!
बुझि पड़ैए
हमर मोनक इजोत सेहो
भेटाय लागल-ए
हे अन्हार! अहाँ संग रहैतरहैत
हमर आत्मा सेहो
भऽ गेल अछि आन्हर
तखन नै ओकरा
देखि नहि पड़ैए
कर्ममार्ग
आ अपस्याँत अछि ओ
हेरबा लेल मुक्ति मार्ग!

सच्चिदानन्द ‘सौरभ’ - भोरक आसमे



चारि दिनसँ कविजी!
आधे पेट खाइत छथि
दुइये पसेरी चाउर
आ तीनिये पसेरी चिकसमे
मास खपेबा लेल
साँझेसँ ओ
परतारैत रहै छथि
धीयापुताकेँ
सूतय लेल
आ घरनीसँ फूसि बाजि
ताकतक बदला
निन्नक गोली
खा लैत छथि कविजी!
भरिपोख सूतबा लेल
मुदा, तैयो कविजी
उठिये जाइत छथि
भुरूकबासँ पहिने
कविता लिखबा लेल
कविता!
जकरा हुनक घरनी
सौतिन कहि
गरियाबैत रहै छन्हि
कविता!
जकरा हुनक सम्बन्धी
डाइन कहि
लतियाबैत रहै छन्हि
तकरे सृजनमे
फरिच्छ धरि
अपस्याँत रहै छथि कविजी
सहज, सरस
आ चोखगरचोखगर
शब्द
हेरय लेल ओ....
काटय छथि अहोछिया
ठीक ओहिना
जेना कमलक पंखुरी मध्य
कैद भौंरा
अतुल रसपानसँ अफरिकेँ
औनाइत रहै-ए
भोरक आसमे..........

सच्चिदानन्द ‘सौरभ’ - देखू नै....



ओ जनानी....
हमर भाउज थिक
से बूझलए सभकेँ
तैयो, कनफुसकी देखि
चोन्हराय छी, किऐ, एना?
देखनाइये-ए तँ देखू ने....
सिनेमा हॉलमे
पार्क आ होटलमे
स्कूलकॉलेजमे
आ मंदिर परिसरमे
देखूदेखू ने
घरमे, बाहरमे....
गाम आ शहरमे
खेतखरिहानमे....
कोनाकोना होइत रहै-ए
छौड़ाछौड़ीमे कनफुसकी
मुंसामौगीमे मशखरी
आ नेनाभुटकामे मुँहदुशी
ओना, हमरा बूझल-ए
ई सभ अहाँकेँ नीके लागत
किऐ तँ, अहुँ....
एहि युगक छी
बस हमहीटा अहाँकेँ
सतयुगी बूझि पड़ै छी