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Sunday, April 15, 2012

मि‍झाइत दीप :: राजेश मोहन झा ‘गुंजन'


मि‍झाइत दीप

बि‍नु वातीक दीप बनल छी
मोती बि‍नु ति‍रस्‍कृत सीप बनल छी
कहब की बि‍नु टाकाक गरीवक बेटी
ने ताज ने राज महीप बनल छी
साज सौन्‍दर्य रहि‍तो मुदा
बि‍नु लक्ष्‍मी शारदा की करती
मोनक बेथा ककरासँ कही
ति‍लक सि‍न्‍धुक ि‍नर्जन द्वीप बनल छी
आत्‍मो भावे तन अछि‍ जहि‍ना
बि‍नु सोनक श्रृंगार अछि‍ तहि‍ना
जनकक हृदए पझाइत भुस्‍सी सन
सौराठ-सभामे अपरतीप बनल छी
नोरक धारसँ आँखि‍ सुरवाएल
वि‍द्या गुणक पुष्‍प मौलाइल
ऐ धनक सवंतमे
जेठक दुपहरि‍याक वि‍रह गीत बनल छी
आगाँ बढ़ू नव तरूण सभ मि‍लि‍ कऽ
नै मौलाइत स्‍वर्ण पुष्‍प धन बि‍नु
मि‍झाइत दीपमे भरू सि‍नेह-सर
करू आलोकि‍त बुझब अकासदीप बनल छी.....।

Saturday, April 7, 2012

परि‍वार नि‍योजन :: राजेश मोहन झा ''गुंजन''


परि‍वार नि‍योजन

छोटका नेना बड़का नेना
एतेक नेनाक कोन प्रयोजन?
समाजक समस्‍या जकड़ि‍ रहल
बि‍नु सफल परि‍वार नि‍योजन
टुनि‍या मुनि‍या गुड़कि‍ रहल छै
एकटा बौआ फुदकि‍ रहल छै
फुदनी फुद-फुद फुदकि‍ रहल छै
बलचनमा दही सुड़कि‍ रहल छै
फुलमति‍या माइक मति‍ अछि‍ मारल
कहथि‍ भगवान हमर कपाड़केँ जाड़ल
कहलौं हम अहाँ देब ने दोषू
आबहुँ रूकि‍ जाउ एकरा सोचू
ऐ बि‍च टुनमा टाँग तोड़ौलक
जखने लोड़ही मॉथ उठौलक
केहेन अकि‍लपर पड़ल छै पाथर
सातसँ की बढ़ाएब सत्तर
जखने हाथे बाढ़नि‍ देखलौं
लत्ते-फत्ते दलान पड़ेलौं
पकड़ि‍ कान नै देब सजेसन

बढ़बए दि‍औ एहि‍ना, पोपुलेशन।