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Tuesday, April 10, 2012

विनीत उत्पल- समाजक ई रूप


इहो अछि एहि समाजक चेहरा
दिल्लीक बाटपर बत्ती लाल भेलापर
इंदौरसँ निजामुद्दीन वा पटनासँ दिल्लीक लेल ट्रेन पकड़बा लेल
आ फेर घरक दुआरिपर
दस्तक दैत देखबामे आबैत अछि ओ
नहि तँ पुरूष अछि आ नहि एकटा स्त्री
भरिसक शारीरिक रूपमे
मुदा मन वा अभिनयक स्वरूप
रहैत अछि अलग-अलग से
से हुनकर की नाम देल जाए

माएक कोखिसँ इहो लेलक जनम
भाइ-बहिनक संग पोसाएल-बढ़ल
स्कूलमे पढाइक सीढ़ी चढ़ल
मुदा फारम भरैत काल खसल भारी बिपैत
किएक तँ आपशन छल दू टा स्त्री वा पुरूष
तखन शुरू भेल हुनकर
सामाजिक बहिष्कार
नहि घरक रहल नहि रहल घाटक
परिस्थिति सभकेँ
जीयब सिखा दैत छैक
से देखबामे आबैत अछि
बाटसँ लऽ कऽ ट्रेन धरि।

विनीत उत्पल - मनुख आ माल



आइ फरियाएल जाए
अपना सभ मनुख छी आकि माल
किएक तँ दुनूमे छैक
जमीन आ आसमानक अंतर
एकटा पेटक लेल रहैत अछि ललाइत
एकटा परिवारक लेल रहैत अछि कपसैत
एकटा फूसि प्रतिष्ठाक लेल करैत अछि छल-प्रपंच
एकटा पाइ-कौड़ीक लेल घड़ी-घड़ी करैत अछि नौटंकी
एकटा मानसिक संतुष्टि लेल बौराइत अछि दिन-राति
एकटा शारीरिक संतुष्टि लेल होइत अछि व्यभिचारी
एकटा पएरपर ठाढ़ भेलाक बाद माए-बाप कऽ दैत अछि कात

दोसर तँ अछि चारिटा टांगबला
अपन पेट भरलाक बाद दैत छैक दोसरकेँ अवसर
सभ कियो ओकर सहोदर छथि
झूठ लेल प्राण नहि गमबैत अछि
दोसर नहि बौराइत अछि
मानसिक वा शारीरिक संतुष्टि लेल
पएरपर ठाढ़ भेलाक बाद
माए-बाप स्वतंत्र कऽ दैत अछि
एहिनामे के ककरासँ उत्तम

ई कहैक गप नहि अछि
मनसँ सोचैत आत्मासँ जाँचैत
निश्चित करू जे नीक के?
मनुख आकि माल।