Pages

Showing posts with label कुमार पवन. Show all posts
Showing posts with label कुमार पवन. Show all posts

Tuesday, April 10, 2012

कुमार पवन - काल्हि तँ रवि छै



ओ आइ मुदित छलाह दूनू बेकती कामकाजी कहुना कऽ एक दोसरासँ राजी बूढ़ छलथिन माय बाप
तीन तीन टा बाल बच्चा अध्ययनरत पलखति नहि दम लेबाक एक दोसराक हाल पुछबाक
दगमगाइत सम्हरैत
कोसक कोस दौगैत
कणकणकेँ दुहैत
क्षणक्षण हकमैत
मुट्ठीमे बसात पकड़ैत
ठेहिआयल छलाह मुदा, आइ मुदित छलाह
मुदित छलाह जे
सप्ताहक आइ छैक अंत
काल्हि तँ रवि छैक
रहब काल्हि निश्चिंत
काल्हि तँ रवि छैक....
जदपि ओ नीक जकाँ जनैत छलाह राखल छनि तैयार कयल काजक दीर्घ पुर्जी काजक आगाँ अपन कोन मर्जी बजौने छनि काल्हिए दर्जी काल्हिए जुटयबाक छनि घरक खर्ची कीनबाक छनि मायबापक लेल दबाइ ट्यूटर बिनु अटकल छनि बेटाक पढ़ाइ ठीक करयबाक छनि टी. बी.
कतोक दिनसँ पत्नी छथिन्ह परेशान
गैसक चूल्हि कऽ रहल छनि हरान नोकरी करथु कि भुकभुकाइत चूल्हिसँ संघर्ष
सऽख तँ भइए गेलनि सुड्डाह मुदा, तैयो ने कऽ सकैत छथि आह....
से ओ नीक जकाँ जनैत छलाह
जे पछिले अनेक रवि जकाँ
कल्हुको रवि आयल जेना अबैत रहल अछि आबि कऽ चलि जायत
जेना जाइत रहल अछि औचके मोन चलल छलनि प्रश्नोत्तर की सरिपहुँ काल्हि रवि रहए?
की सरिपहुँ काल्हि रहब निफिक्किर? नहि! जिनगी मे कोनो रवि कहाँ? समय बीतैत अछि अविराम जिनगीमे कतय अछि आराम? तदपि पता नहि किएक बना कऽ रखैत एकटा सुखद भ्रम ओ आइ मुदित छलाह
चलू सप्ताहक आइ छैक अंत काल्हि तँ रवि छैक
रहब काल्हि निश्चिंत काल्हि तँ रवि छैक    

कुमार पवन - नहि बिसरैछ



नहि बिसरैछ....नहि बिसरैछ एको पलक लेल नहि बिसरैछ जाड़क ओ ठिठुरैत कनकनायल भोर....
सघन कुहेसकेँ चीरैत मध्यम गतिएँ आगाँ बढ़ैत
बिलमल छल मुजफ्फरपुर टीसनपर
अवध आसाम एक्सप्रेस स्लीपरक कोच नम्बर सातमे
इक्का दुक्की लोक सभ टायलेट दिस अबैत जाइत
बाकी यात्री सभ मारने गुबदी अलसाइत.... चाहबला बिस्कुटबला अपन अपन समानक
सस्वर विज्ञापन करैत
कऽ रहल छल जड़ताकेँ भंग.... कि तखनहि ओ
चढ़ल छल बॉगीमे चुपचाप प्रायः दस बर्खक दुब्बरपातर धुआ कँचि आयल आँखि बहैत सुड़सुड़ाइत नाक मैलचिक्कट फाटल शर्टसँ कहुना कऽ झँपने अपन देह गर्दनिसँ ठेहुन धरि
मुलकल कठुआयल खालीखाली पएर....

निःशब्द लागल बहारय ओ बॉगीमे छिड़िआयल प्रयुक्तपरित्यक्त पदार्थ सभ खाली डिस्पोजेबुल कप खोइया चिनिञा बादामक सिगरेटक मिझायल शेषांश सिट्ठी तमाकुलक
अँइठकुइठ भरल कागजी प्लेट....
मारि कऽ ठेहुनियाँ निहुरैत
निचला बर्थ तर ढुकैत
चीज वस्तु सभकेँ
एम्हर ओम्हर घुसकबैत एतऽ सँ ओतऽ धरि बॉगी भरि बहारैत रहल....बहारैत रहल खुजि कऽ ट्रेन अपन गतिसँ बढ़ैत रहल....
खतम कऽ काज पसारि देने रहय ओ
अपन कठुआयल हाथ एम्हर बॉगी भरि पसरल देखि गंदगी
रातिमे जे यात्री सभ भेल रहथि परेशान
तनि गेल छलनि एखन हुनके सभक चेहरा देखि कऽ एहि अवांछित याचककेँ क्यो असहज देखि छौड़ाक घिनायल धुआ प्रश्नाकुल क्यो जे कोन लापरबाहक ई अछि संतान देशक बेसम्हार जनसंख्याक प्रति चिंतित क्यो विस्मित क्यो आखिर विदाउट टिकट ई सभ चलैत अछि कोना क्योक्यो तँ एकदम स्पष्ट छलाह
चोरक गिरोहक तँ ई अछि एजेंट....

जाड़क ओहि कनकनायल भोरमे कोच नम्बर सातक बोनाफाइड यात्री सभ मसृण कम्बलक उष्णतामे सुटकल करैत रहलाह धुरझाड़ विमर्श जनसंख्या विस्फोटपर असुरक्षित यात्रापर बाल मजदूरीपर सरकारक असफलतापर
देशक दुर्दशापर
आ ओम्हर ओ
दस बर्खक गरजू अबोध मजदूर सभ किछु सुनैत रहल सुनियो कऽ टारैत रहल ठोरपर ठोर सटौने
एकएक व्यक्ति लग जाइत रहल अप्पन नान्हिटा खाली हाथ बेरबेर पसारैत रहल....
नहि बिसरैछ....नहि बिसरैछ एको पलक लेल नहि बिसरैछ खजूरपातक बाढ़नि पकड़ने ओ
वाम हाथ याचनामे पसरल ओ
खालीखाली दहिन हाथ आ काँचीसँ भरल ओ चमकैत आँखि दून नहि बिसरैछ....।