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Tuesday, April 10, 2012

रघुनाथ मुखिया- राजमहल




राजमहलक देबालसँ
अबैत अछि कनबाक सिसकी
बेवशक माँउस सड़बाक गन्ह
आ टपकैत अछि बूँदबूँद शोणित।
एकर एकएक गोट ईंटा
ओहि शोषितमजूरक हाड़ अछि
आ गिलावा ओकर मॉउस
जकर पसेनासँ पटाकऽ
ओकर शोणितसँ रंगल गेल देबाल।
एहि देबालक चमकि देखिकऽ
सहजहि अंदाज लागि जाइत अछि जे
केहन लाल टुहटुह शोणित रहै
ओहि दमितशोषित देहमे
जे साफसाफ देखार पड़ैत अछि
अहि अट्टालिकापर।
जतय चारू भरक हरियरीमे
देखार पड़ैत अछि
ओकर श्रमशोषणक मूक गबाही
जे जनम भरि परिश्रम करैत
खिन्न मनसँ
पेट पकड़िकेँ बितेलनि राति।
वैह नरकंकाल प्राचीरक नेओसँ
जकरा छातीपर ठाढ़ अछि ई राजमहल
चित्कार करैत शोर पाड़ि रहल अछि जे
आबो तँ हमरा आजाद कराउ
एहि मोटक देबाल
आ लोहाक जंगलासँ
जनैत छी! की भेल रहै?
हमर गलती तँ मात्र एतबे भरि रहै जे
फकत दुनू साँझक रोटी माँगलिअनि
तेँ हमरा पएरमे बेड़ी बान्हि कऽ
उनटा लटका देल गेल अछि
तहियासँ आइ धरि
समयक आँच सहैत आएल छी
अपन विद्रोही संततिक प्रतीक्षामे।
किऐ तँ
आइ फेरसँ हुनक संतति
किछु ओहने करबाक लेल
एहि प्राचीरकेँ देखिकऽ
यशोगान करऽ लगलाह अछि जे

ई हमरे पुरखा बनौने छलाह। 

रघुनाथ मुखिया- दादागिरी



बेसी दौड़बे तँ
दौनीक बरद जकाँ
कराममे जोड़ि देबौ!
हाथमुँहमे जाय लागलौ?
आ भरेऽ लागलौ पेट?
जाबी बान्हि देबौ, जाबी!!
पाँखि बढ़ल जाइ छौ?
लोकतंत्र चाही तोरा?
संविधान लेबे संविधान?
आ ने लुक्कासँ झरका देबौ, लुक्कासँ!
ईह! नाचैए कोना छमछम
मुंगरीसँ घुट्ठी ससारि देबौ, घुट्ठी
नञि तँ मोन ठंडा केने रह, ठंडा
चिन्है नञि छिही हमरा?
भकसी झोंका देबौ, भकसी।
कलमुच टुकुरटुकुर तकैत रह
कानमे तूरतेल देने सूतल रह
जाधरि हम तोहर कंठ मोकि
साँस नञि निकासि दियौ। 

रघुनाथ मुखिया- आइ पहिल बेर



गामक गाम
पथार खेनिहारक गलामे
लागि गेल रहै डोरि
आइ पहिल बेर।
हटियाबाजारक भीड़मे
आगाँमे राखल हरियरी
ओकरा अनसोहाँत लगैत रहै
आइ पहिल बेर।
ओ खस्सी हरियरी छोड़ि
चमकाबैत छूरी आ गलाक डोरि पकड़ने
लोककेँ निहारैत रहै

आइ पहिल बेर।

रघुनाथ मुखिया- ई नेना



बाढ़िमे भसियाओल मायक लहासकेँ
धारक कातमे तकैत नेना
दस बर्खक बलात्कृत मुइल
बहिनक मुँह तकैत नेना
फेकल पातपर लुधकल कुकूरकेँ
चल जयबाक बाट तकैत नेना
आतंकवादी विस्फोटमे चिथड़ी भेल
मजूर बापक खंडपखंड देहकेँ तकैत नेना
भायक कफनक लेल
मनुक्खक हेंजमे हाथ पसारने नेना
हम पुछै छीई नेनाकेँ छी?
हम देखैछीई नेना अहुँ भऽ सकैत छी
अहुँक नेना भऽ सकैए ई नेना।           
             

रघुनाथ मुखिया - बिखाह चाङुर



पड़ाइत जटायुक वंशजसँ
भेट भेल छल शांत आ एकांतमे
अपस्याँत भागल जाइत देखि
हम टोकालिअनि
एक क्षण बिलमलाह
आ, ओ हमरा
पड़ाइतेपड़ाइत कहि गेल
हे महामानव!
अपनेक नितनिर्मित बिखाह वायुमण्डलसँ
हमर वंश उपटि गेल
कतेको डीहडाबर पर
बैंगनभाँटा रोपा गेलै
हमर तँ प्राणे बाँचल अछि जे
एहि अन्हरियोमे भागि रहल छी
अपनेक छत्र छायासँ
आ हिआसि रहल छी ओहेन ठाँ
जतऽ अपनेक जातिक आवागमन नञि हो।
ओना तँ हमरो मोन रहऽ
मंगल आ चान
मुदा ओत्तहुँ पहुँचि चुकल अछि अपनेक यान
नदी फिरिये देने अछि यूरो गागरिन आ राकेश श्रीमन्
आन कतेको हाँ मुति घिनेने अछि अपनेक श्वान।
हमर तँ दुखक नञि ओर
मुदा बचाँ सकब तँ बचाउ
अहाँ अपन संतानकेँ
अपन बिखाह चाङुरसँ 

रघुनाथ मुखिया- एक सालमे तेरह महीना



आउ, आउ बाउ बैसू
बड्ड दुखी देखै छी
किछु खगता अछि की?
बाजूबाजू लजाउ नञि
एतऽ अबिते छैक खगल लोक सभ
अहाँकेँ की अछि?
बेटीक बिआह आकि बापक सराध
बेटाक अछि मूरन
वा, माथक आँखिक अछि अपरेशन
भेंटि जाइत छैक
तखन हँ अहाँकेँ
किछु जत्थाजाल
वा किछु मालजाल
अछि की नञि?
हँ, हँ अछि अपनेक आड़िमे
ब्रह्मोत्तरेमे बचल अछि पचकठबी
तखन आब ऐ कागतपर
दहक ओठाक निशान
आ, ई लैह नओ सय टका
एक सय टका
मास भरिक सूदि काटि लेलिऽ
आ हँ, सुनऽ
एहिबेर जेठ नञि टपऽ दिहक
आखाढ़ेमे मलेमास हेतै
आ, तखन तेरह मासक साल हेतै।

रघुनाथ मुखिया- कोशीक आगमन




कहैत छथिन
जोतखीपण्डित
पोथीपतरा उचारिकेँ
एहिबेर
भगवती एतीह मनुखपर।
तखन
हम कहलिअनि
कोशीक बिपटल
मशान बनल एहि भूमिपर
हेराएलभुथिआएल
लच्छकलच्छ
अनचिन्हार लहासक
हिसाबकिताब देबाक लेल
आब ओ
नञि औतीह मनुख दिस।
किएक तँ
हुनके बहिन कोशी
हुनका संगे छऽल केने
संहारिणीक रूप धेने
गामगाम सुड्डाह करैत
लच्छकलच्छ लहास हेलबैत
सवा मास पहिनहि
कुशहासँ सवार भेल
चल एलीह मनुखपर।
आब ओ
ओहि हाड़कहार
सजेबामे लागल रहतीह
शोणितक नीसाँमे
माँ तल आ बिसरल रहतीह
आगाँमे कल जोड़ने ठाढ़ भेल
त्रस्त अरदसुआ सभकेँ
अगिला आवाहन धरि।
एम्हर बगुला भगत सभ
जान बकसि देबाक लेल
गोहारिक आश्वासन दैत
सहयोगक अक्षत छीट रहल अछि
आ, धीरज धरबैत अछि जे
आब अहाँ सभक फूल हासि जरूर हेतै
अपनअपन डालीमे
पानपरसाद सजौने

एहिना पाँच बर्ख धरि

कऽल जोड़ने, चुपचाप ठाढ़ तँ रहू।

रघुनाथ मुखिया- कालचक्र



गोरकाक समयमे
किछु लोक सभ
परोसि दैत रहनि
अपन घरक जनानी सभकेँ
ओकर चानीक थारीमे।
किएक तँ
हुनक देह की थोड़बे घटि जाइत रहनि?
मुदा बाढ़ि जाइत रहनि
बिनु किछु बेचने
हुनके बखारीमे सोन आ चानीक भार
आ नमरि जाइत रहै हुनक श्वेतपधार
छिड़िया जाइत रहनि हुनक नाम
चानसूरजक इजौत जकाँ
भारतसँ बिलायत धरि।
आ ओकरा गेलाक बाद
एतुक्का बोनिहारिन जनानी सभसँ
ओसुली भेलै सूदिकसूदि
अल्हुआक कंदसँ
खेतपथारक करमी सागसँ
मड़ूआ, कोंनी, साम, कोदो आ खुद्दीक रोटी सभसँ
बदलल जाए लागल रहै
बोनिहारिन जनानीक अंग प्रत्यंग।
आ एखन पंचायत प्रतिनिधि
किछु अदलाबदली करबाक लेल
बी.पी.एल, अन्त्योदय, आवास आ पेंशन लाभसँ
दहाबोर कऽ देबाक शर्त्तपर
भिक्षू वेषमे हाथ जोड़ने
देह तकैत आँखि निपोड़ने
ठिठिआइत ठाढ़ अछि
एकटा नवयोवना मसोमातक ड्योढ़ीपर।

रघुनाथ मुखिया- जमल शोणित



सुनै छियै जे
हमरो गाममे जमींदार सभ रहै
खूब पैघो नञि तखन रहै तँ जमींदारे
ओ अपन सिपाही आ मुँह लगुआक संगेसंग
अठबारा छोटकाक टोलपर घुमै लऽ आबै
आ जाहि टोलपर आबै
बुझू जे पूरा टोले डोलमाल
ओ डोलमाल कोनो बाढ़ि आ भूकंपसँ नञि
मालिकक छुछन्नरि चालिसँ होइत छल
मालिक बेधड़क ककरो आँगन घुसि
ककरो बौह, बेटी आकि पुतोहूएसँ
कहैत रहै जे
हे गे फलनाक बौह, फलनाक बेटी, फलनाक पुतोहू
उघार, उघार, उघार
*तोहर पएर बड्ड सुन्नर छौ
तँ ओ कतेक सुन्नर हेतौ
आ कनियो बिलमि गेलापर
दुनुटा सिपहिया
हुनक तनक वस्त्रकेँ उपर उठा दैत रहै
आ मालिक अपन दुनु हाथसँ
कोनोकोनो अंगकेँ मीड़ैत
निर्लज्जताक आँखिसँ निहारैत
पतित मुँह लगुआक संग खिलखिलाइत
आँगनेआँगने छिछियाबैत रहै
आ टोलकटोल
पुरूखक शोणित जमल जाइत रहै।

रघुनाथ मुखिया- मनुक्खक सूखौंत



ओ कंठ मोकि हँसाबैए
मुक्कासँ कटहर पकाबैए।
जुनि माँगू पानि मुखियासरपंचक दालानपर
ओ देशी दारूक धार बहाबैए
पंचायती राजक विकासपुत्र कहेबा लेल
मनुक्खक सूखौंत बनाबैए। ओ कंठ....
काल्हि कथीक पंचैती होएत
तकर जोगार आइये लगाबैए
जौं जोगार नञि लागल तँ
निचेन बैसल मनुक्खपर अपन हुलाबैए। ओ कंठ....
पंचैतीसँ पहिनहि
जे दारू आ मनुक्खक साना पहुँचाबैए
ओ आँखि मुनिकेँ सुति रहैत अछि
आ सरपंच, एक तरफा फैसला सुनाबैए। ओ कंठ....
सौ दिनक रोजगारक कार्ड
दुइचारि टकामे बिकाबैए
जे किओ नञि देलकै निशान
ओकरा बीच्चे सड़कपर सदस्य सभ मुकियाबैए। ओ कंठ....
तेखगर जनताक मुँह बन्न करबा लेल
जोरगर लोकसँ पहरेदारी कराबैए
कमीशनक मोट रकम केर वास्ते
सड़कमे तीन नम्बरा ईंटा लगाबैए। ओ कंठ....
मजाल अछि जे किओ करताह विरोध
सोलहो पंच चमेटा देखाबैए
जौं फूजल मुँह अहाँ केर
बत्तीसे हाथक बीच कंठ धराबैए। ओ कंठ....

रघुनाथ मुखिया- छाँहक–सुआद



बेरोजगार लोक
आ बिनु फरैफुलाबै बला गाछबिरीछ
दुनुमे की भेद आ की समानता
मरि जाए बरू कटि जाए तँ बेजायै की।
लोकवेदक कहब छनि
जे लोक नञि हरियर नोट कमाबऽ
आ नञि काया पोसबाक लेल सुन्नर फऽर उपजाबऽ
ओकर बेगरते कोन एहि संसारमे?
हे देखु! तकनीकी शिक्षासँ परिपूर्ण
डंकल अंकल आ चार्ल्स वॉवेजक उत्पाद
नान्हिएटा गाछ जड़िसँ छीप धरि लदमलद
आ खाद पानिसँ कोना तोपल अछि
आ हे एकबेर ओम्हरो देखू ओ....
बऽड़, पीपर आ पाखरिक ढ़ुठिआइत गाछबिरीछकेँ
जूरो शीतलमे एक ठोप भेटाइत हेतै की नहिए
तखनो सदति टटाइत ठाढ़ अछि अनका लेल।
आ हेओ बाबू, भैया, साहेब हजूर
ओहि बऽड़, पीपर आ पाखरिक छाँहक सुआद तेँ
जेठक दुपहरियामे
बाट नपैते मोसाफिरे बुझैत हेतै, नञि?

रघुनाथ मुखिया - दूधक धार



हम देखैत छी हमरा सोझाँमे
दूध आ अन्नक लेल
हमर दूधमुँहा नेना कोना छटपटा रहल अछि हमर कोढ़ ओहिखन फाटि जाइछ जखन ओ अपन आंगनक ड्योढ़ी दिस अपन तुरियाक दूध आ भातबला कटोरा दोड़िकेँ छीनऽ चाहैत अछि आ हमरा चिन्हबऽ लगैत अछि दूध आ भात
ओकर रंग आ स्वाद ओहिखन मोन होइत अछि जे
हमरा कानमे पसिझल पाथर
किएक नञि भरि देल गेल वा ई गप्प सुनबासँ पहिनहि
हमर प्राणपखेरू किएक नहि उड़ि गेल?
किएक तँ
कलम क्रांति उठा सकैछ शांतिक समुद्र लहरा सकैछ
बुद्धक लहाँस खसा सकैछ नवनव सृष्टिक विनाश आ निर्माण कऽ सकैछ शोणितक धार बहा सकैछ मुदा शिशुक लेल
दूधक धार जुटाएब ओ संभव अछि कलमसँ

रघुनाथ मुखिया - कविताक शीर्षक जकाँ



एहि माटिपर
जतऽ कहियो सुग्गा पढ़ैत छल वेद बुझि पड़ल जे गार्गी कोना तैयार भेल हेतीह
विद्रोहक लेल।
भारती कोनो मसल्ला पिसलनि
धुरंधर सन्यासीक छातीपर
तकर चर्चा एखनहुँ होइत अछि
महिषीक माटिपर
एखनहुँ चर्चा होइत छैक जे
सहुआक फेरमे
सिबरानी कोना प्रेमचन्दकेँ मारि देलनि
आ भारती कोना
शंकराचार्यकेँ परास्त कऽ
मंडन मिश्रकेँ तारि देलनि
आ से एकटा अचरज देखियौ जे
भारतीक पराजित हेबाक कोन धूजा
पुरातत्वविद् फनीकांत मिश्रकेँ
कतौका संग्रहलयमे भेटि गेलै
जकरा ओ अपन बपौती आकि खतियौनी बुझि
किएक मिथिलामे फहराबऽ लगलाह?
ई सभ किछु कहबाक लेल
मंडन संततिक रुपमे
प्रचण्ड रौदमे तप्त भेल
नहि, नहि दुनुक बीचमे
सत्यक स्वरुपमे
वियोगीठाढ़ अछि
सत्यकेँ सत्य कहबा लेल
भगवती उग्रताराक खड्गपर
अपन माथ रखने।

रघुनाथ मुखिया - अनुत्तरित प्रश्न



सहोदर अर्णवानन्द आ प्रणवानन्दक मघ्य बैसलि
हमर अपूर्णे त्रिवेर्षे तनया
मैथिली एकलव्या
स्वतंत्रता संग्रामक इतिहास
उलटेबामे मग्न भेल
गांधी, तिलक, लोहिया, सुभाषक
फोटो सभपर तर्जनी राखि
पुछैत गेलि
पप्पा ई के छिऐ?
हम कहैत गेलौं- बबा!
फेर पन्ना उनटि गेल
आब मैथिलीक समक्ष
भेल रहै जनरल ओडारक
ओ विकराल चित्र
जकरा देखितहि हमरा
यादि पड़ि गेल छल
देबालसँ घेरल मैदानक
एक मात्र निकास द्वारपर सँ
निहत्थापर तोपसँ चलाओल गेल १४५० राउण्ड गोली
तावत मैथिली
अपन तनल भृकुटी संग
प्रश्न दागि देलक
पप्पा ई के हेतै ?
आ हम अबाक
एहि बेर ई नहि कहि सकलहुँ जे
इहो तोहर बब्बे हेतऽ।
हम सकदम्मे रही
मुदा मैथिली हमरासँ आँखि भिरेने
तावत मैथिलीक नजरि
घरमे दंड खिचैत मूसरीपर पड़ि गेल
फँसल पन्नो उलटि गेल
प्रश्नो बदलि गेल
आ हमरो पिण्ड छुटल
नेनाक अनुत्तरित प्रश्नसँ