Pages

Showing posts with label शीतल झा. Show all posts
Showing posts with label शीतल झा. Show all posts

Tuesday, April 10, 2012

शीतल झा - टी..ऽऽऽऽ..स



हमरोमे अहूमे एकटा टी..ऽऽ..स अछि,
नहि कहि ककर उन्नैस ककर बीस अछि।
किनका आसपर हम छाती तानि चलू,
हुनके तँ बिछुआएल निहुरल शीश अछि।
जीबाक जोगाड़ बड्ड कष्टप्रद अछि, बाउ रे,
पुजारीक हाथमे अमृत कहाँ विष अछि।
शांतिक शब्दसँ मोन आब उठि गेल,
भक्त रिक्त पेटसँ से मात्र रीस अछि।