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Tuesday, September 4, 2012

गद्य कविता डॉ. काञ्चीनाथ झा ‘किरण’क नामक अद्वैत मीमांसा- रमेश


रमेश १९६१- ,जन्म स्थान मेंहथ, मधुबनी, बिहार। चर्चित कथाकार ओ कवि। प्रकाशित कृति: समांग, समानांतर, दखल (कथा संग्रह), नागफेनी (गजल संग्रह), संगोर, समवेत स्वरक आगू, कोसी धारक सभ्यता, पाथरपर दूभि (काव्य संग्रह), प्रतिक्रिया (आलोचनात्मक निबंध)।

गद्य कविता
डॉ. काञ्चीनाथ झा किरणक नामक अद्वैत मीमांसा
अहाँ स्वभिमानी छी, तँ किरण जी छी।
जनमानसक पक्षमे सामाजिक छी, तँ किरणजी छी।
अहाँ किरणजी छी, तँ मह-महाइत मिथिला छी।
अहाँ मह-महाइत मिथिला छी, तँ निश्चिते कह-कह भुम्‍हूर सन किरणजी छी।
अहाँ मानसिकता आ मोहविरामे सोइतछी, तँ किरणजी नै छी। मोहविरामे पञ्जी-प्रबन्धक बाबू साहेबछी, तँ किरणजी नहिए टा छी।
अहाँ वास्तवमे जयवारछी, तँ चलू कहुना कऽ किरणजी छी।
जँ ब्राह्मण-वर्गीकरणमे कत्तहु टा नै छी अहाँ, तँ जरूर किरणजी छी।
आ जँ दसो दिकपालमे सँ कि‍यो अहाँक पैरबीकार नै छथि, तँ ध्रुव सत्य मानू, अहाँ आर कि‍यो नै, किरणेजी टा छी।
अहाँक मन-बन्ध सुमनजी-अमरजी सँ हुअए, तँ भऽ सकैए, संज्ञा रूपें अथवा मोहविरामे अहाँ साहित्यिक आ धार्मिक ब्राह्मण भऽ जाइ। अहाँक मन-बन्ध मधुप जीसँ हो, तँ निश्छल भक्त-हृदए मैथिल जीवनक लोकगायक अहाँकेँ मानबामे कोनो असौकर्य नै। जँ मणिपद्धजी सँ मन-बन्ध हुअए, तँ, अपनाकेँ मिथिलाक लोक-संस्कृति-चेताक उदात्त उदाहरण बूझि सकैत छी। आ जँ अहाँक मन-बन्ध किरणेजी टासँ हो, तँ सय प्रतिशत मनुक्खक अलावा अहाँ आर किछु भैय्ये नै सकैत छी।

कविवर सीताराम झाक अन्योक्ति-वक्रोक्ति आइयो मिथिलाक जड़ता-जटिलतापर मूड़ी पटकि रहल अछि।
अपन मुक्तिक प्रसंग तकैत आइयो राजकमल मिथिलाक महावनमे अहुरिया काटि रहल छथि।
बाबा बैद्यनाथकेँ पाथर कहैत आइयो किरण-शिष्य यात्रीक अनवरत ब्रह्माण्ड-विलाप जारी अछि। धूमकेतु मनुक्खक देवत्वेपर एखनो रिसर्चकऽ रहल छथि। मुदा साक्षात् किरणजी आइयो मनुखताक उपेक्षापर गुम्हरैत, पुरातनपंथीकेँ कान पकड़ैत/ माटिक महादेवकेँ छोड़ि मनुक्ख-पूजनक सुस्पष्ट उद्घोषणा कऽ रहल छथि।

अहाँ खट्टर कका छी, तँ, माङुरक झोड़सँ चरणामृत लऽ सकैत छी। मुदा किरणजी जकाँ माङुरक ओही झोड़सँ सर्वहारा वर्गक अरूदा बढ़ेबाक बैदगिरी नै कऽ सकैत छी। अहाँ कञ्चन-जंघासँ कूच-विहार धरिक यात्रा कऽ सकैत छी, मुदा डोमटोलीसँ मुसहरी धरिक नै। अहाँ समाजिक सरोकारमे सुधारवादी भऽ सकैत छी, मुदा, किसान-आन्दोलनकेँ मिथिलाक जमीनपर उतारि परिवर्त्तनकामी नै।

अहाँ भाङ पीब वसंतक स्वागत करब, तँ, अहाँकेँ, बताह कहबामे हुनकर संघर्ष-गीतक भास कनियो बे-उरेब हेबाक प्रश्ने कहाँ अछि? जहिना रूसोक पृष्ठभूमि बिना फ्रांसीसी क्रांति संभव नै छल, तहिना मधुरमनिक पृष्ठभूमि बिना जोड़ा-मन्दिरक अस्तित्व संभव कहाँ छल? ‘जगतारानिनै तँ बाँसक ओधिकी? माटिक अभ्यर्थना नै आ जनोन्मुखी सोचक सर्जना नै तँ आलोचनाक राज हंसक धोधि की?

ओ प्राचीन गीतक लाउड-स्पीकरबनि सकैत छलाह, नवीन गीतक सी.डी.क उद्गाता नै। ओ राज-सरोवरक हंस बनि नीर-क्षीर-विवेक(?) सँ आभिजात्य मीमांसाक पथार लगा कऽ साहित्यालोचनक खुट्टा गाड़ि सकैत छलाह। मुदा नव-चेतनाक प्रगति-शील गीतक गाता आ ज्ञाता नै। ओ किरणजीकेँ काव्योपेक्षाक दंश दऽ सकैत छलाह, मुदा हुनका काल-निर्णए आ आगत-पीढ़ीक मूडअज्ञात छल। ओ वस्तुतः शास्त्रीयछलाह, आ किरणजी तृणमूलक कार्यकर्त्ता। ओ उरोजकेँ सरोजक उपमान बना श्रृंगार-काव्यक प्राचीन परंपराकेँ सम्पुष्ट कऽ सकैत छलाह। मुदा धानक उरोजमे दूध भरबाक सामर्थ्य हुनका कतए? ओ हुनकर जीवनक जड़त्व आ साहित्यक सीमा छल।

अहाँ भासा-मंचपर लोक-चेतनाक सर्जक छी- तँ किरणजी छी।
साहित्यिक-मंचपर सामाजिक-चेतनाक पोषक छी- तँ किरणजी छी।
संस्कृतिक मंचपर जन-संस्कृतिक गायक छी- तँ किरणजी छी।
राजनीतिक मंचपर दिशाहारा-वर्गक पुष्टिवर्द्धनमे महराइगबैत छी- तँ किरणजी छी।
विद्यापतिक-मंचपर जनवादी गीत-संस्कृतिक उद्घाटक छी- तँ किरणजी छी।
अहाँक जीवन-दर्शन सुचिंतित ऊर्ध्वगामी अछि- तँ किरणजी छी।
जीवन आ साहित्यमे समरूप दृष्टिकोण हुअए- तँ अहाँ किरणेजी टा भऽ सकैत छी।





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