रूसलि किए सूतलि छी बनबू ने कनेक चाह अय ।
मिथिला हम चललहुँ, टाटानगरीसँ आइ अय।।
अहाँ जौं एना रहब तँ हम कोना जीअब,
सदिखन कनिते-कनिते व्यथे जहर पीअब ।
एना अहाँॅ रूसब तँ हम कऽ लेब दोसर सगाइ अय,
मिथिला ...........।।
अहाँक रूप देखिते कामदेवो कानैत छथि,
‘‘मृगनयनी‘‘ केॅ ओ उर्वशी मानैत छथि ।
बिहुँसल मादक घुघना लागै लौंगिया मिरचाइ अय,
मिथिला ..............।।
छगनलाल ज्वेलरीसँ कनकहार लायब,
आ जुरैन पूनमकेँॅ, पार्कमे घुमाएब।
हहरल मनक तृष्णा, नहि बनू हरजाइ अय,
मिथिला ............।।
ऊठू प्रिये, अहाँॅ जल्दी नहाबू,
कोप भवनसँ उठि कऽ लगमे आबू ।
मंदहि मुस्की मारू, हम अनलहुँॅ अछि मलाइ अय,
मिथिला ...........।।
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