सतबेध
सत् केर शक्ति जगैछ भूमि
रण
उठि-मरि, मरि उठि, उठि
कहै छै।
कुंज-निकंुज पुरुष परीछा
असत्-सत् सुसत् बनै छै।
इत्यादि, आदिसँ दादी-नानी
सतबेध खिस्सा कहैत एली
वेद-पुराण सिर-सजि मणि
दिन-राति सुनबैत एली
भरल-पुरल पोथी-पुराण
सत्-बेध जिनगी भरल-पुरल छै।
कखनो जोगीक जोग बेधि
तीन सत् वाण रटै छै।
काल कुचक्र चक्र सुचक्र
वाण बेधि मारैत रहै छै।
वाण वाणि नारी-पुरुष संग
साड़ी शक्ति सजबैत रहै छै।
मिथिला मर्म माथ तखन
मथि-मथि माथ मिलबै छै।
दान सतंजा बाँटि-बिलहि
जिनगी सफल करैत कहै छै।
चक्री-कुचक्री वाण बनि वन
चालि कुकुड़ धड़ैत एलैए।
जिनगी जुआ पकड़ि-पकड़ि
पछुआ पाट बिलहैत एलैए।
पाटि-पाटि पटिया-पटिया
पटिया धरती बिछबैत एलैए।
नरि गोनरि गमार कुहू कहि
तर-उपरा रंग चढ़बैत एलैए।
चिक्कन-चुनमुन चुनचुनाइत
देखि
लोल-बोल बतिआइत एलैए।
मन-मानूख फुसला-पनिया
मनु-मानव कहैत एलैए।
बाणि मोड़ि पकड़ि पग
जंगल नाच देखैत एलैए।
भ्रमर रूप सजि-धजि-धजि
भौं-आँखि चढ़बैत एलैए।
फूल कमल बसोबारा कहि
कमल दहल दहलाइत एलैए।
दोबर-तेबर दस-बीस कहि
सत् शून्य भरैत एलैए।
सैयाँ-निनानबे मंत्र रचि
बसि
अस्सी-खस्सी बनबैत
एलैए।
बर्जित तन कहि-कहि
मानव-मन रचैत एलैए।
खस्सी-बकरी रूप देखि-देखि
मासु खून पीबैत एलैए।
लंका दर्शन पूर्व राम
वाण समुद्र पकड़ै छै।
सत्-बेध पाथर पकड़ि-पकड़ि
सेतु बान्ह बनबै छै।
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