समाज सजल......
समाज सजल छै छिपाड़-उकट्ठी
छीप-उकठपना बेवसाय बनल छै।
रंग-बिरंग समाज गढ़ि-मढ़ि
रंग-रंग छीप कटैत रहै छै।
भाय यौ, रंग-रंग......।
आस-वियास बनिते जहिना
चोर-माखन कृष्ण कहै छै।
गोप-गोपी बीच उमकि
कहि उमकि उकठपन कहै छै।
भाय यौ, कहि उमकि......।
भावो लोक तहिना भवए
मारि
सेन्ह काटि कहै छै।
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