रणभूमि
ओर-छोर बिनु भूमि कुरुक्षेत्रक
एक आबए एक जाए धीर।
साधि-साधि तड़कस सजा
रंग-बिरंगी सधए तीर।
युद्धभूमि संसार केर
भोगिनिहार योद्धा रण-वीर
रसमे डुमल रसिक शिरोमणि
देखए सदिखन भऽ थीर।
ज्ञान-कर्म बीच बसए धर्म
अंगेजि चलए सदति कर्मवीर
जतए बसी सएह भूमि ने
मातृभूमिक बनैत हीर।
मातृभूमि तँ मातृभूमि छी
सिरजए सदए भऽ गंग।
शिवसिर चढ़ि दुनू गाबए
की गंग की भंग।
मुँह चमकबए ज्ञान सरूपा
दोसर पक्ष कहबए कृष्ण।
तेसर जाल पसारि-पसारि
दु:शासन, अर्जुन बीच कृष्ण ।
तीन तीर बेधने दुनियाँकेँ
दैविक, भौतिक ओ अध्यात्म।
बेरा-बेरा देखि तीनू केर
धर्म-अधर्म बीच महात्म।
तन रोग मन सोग
अनिवार्य खेल जिनगी केर
डटए पड़त दुनूसँ
मक्खनसँ मिसरीक लेल।
दैवी दाह तँ चलिते रहत
की राति की दिन।
तइ संग चारू कात नाचए
खीच बाँहि लेत छीन।
सम दृष्टिक हथियार तेज
जे देखए तइ लेल।
दूधो-लाबा विष सिरजए
सदिखन देखू जिनगीक लेल।
बिना प्रेमी प्रेम कतए
प्रेमास्पदक पकरू बाट।
नाचि-नाचि, विहुँहि-विहँुसि
देखैत प्रेम सरोवर घाट।
जेहने मढ़ल शंख घाट केर
तेहने शीतल सरोवर पानि
तन पवित्र मन केर सिंचू
सक्कत विवेक बना ठानि।
करए शुद्ध तन-मन केर
पहिल पहर नै छोड़ू जानि।
दिन-रातिक रहस्य बूझि
हुसू नै कखनो जानि।
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