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Tuesday, April 10, 2012

सच्चिदानन्द ‘सौरभ’ - अन्हारक संग रहैत रहैत



चहुँ दिस पसरल अछि
घुप्प अन्हार
अन्हारमे
बाट हेरबा लेल
दऽ रहल छी हथोरिया
मुदा, नहि भेटय अछि
बाट
आ नहि भेटय अछि
अन्हारक ओरछोर
कतबो नोचै छी
अपन देहहाथ
वा पीटै छी कपार
रहै छी सदिखन
ओतय ठाढ़
जतय अछि अन्हारक
एक छत्र राज!
बुझि पड़ैए
हमर मोनक इजोत सेहो
भेटाय लागल-ए
हे अन्हार! अहाँ संग रहैतरहैत
हमर आत्मा सेहो
भऽ गेल अछि आन्हर
तखन नै ओकरा
देखि नहि पड़ैए
कर्ममार्ग
आ अपस्याँत अछि ओ
हेरबा लेल मुक्ति मार्ग!

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