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Tuesday, April 10, 2012

रूपेश कुमार झा ’त्योंथ’ - खेली सप्पत जा भुइयाँ थान



बड़ रे जतन सँ हम पोसली पुता केँ,
भूखे सुतली अपने मर ओकरा सुतौली खुआ केँ।
अपने हम मूरुख मुदा बौआ केँ पढौली,
काटि कष्ट पोथी लेल ढौआ जुटौली।
देखिते हमर पूत भेल फूटि जुआन,
मोने बीतल हमर कष्ट मुख पसरल मुस्कान।
ओहि बेरा जिद कयलक गेल ओ असाम,
महिनो ने लगलै पठौलक ढौआ कऽ काम।
तंग छली पहिने आब उबार भेल जान,
तकलीफ भेल छू-मंतर भेल दिन हमर असान।
आयल एक दिन बेरा मे बौआ कयने लाल कान,
देखली ओकर कान आकि उड़ल हमर प्राण।
कमाइ हइ लोक ढौआ ढेरी परदेश जा,
मुदा भागि आयल बौआ हमर मारि खा।
किछु दिनक बाद भेल ढौआ केर टान,
भऽ गेल हमर समैया फेरो पहिने समान।
फेर गेल बेटा बम्बइ अपन पित्तीक संग,
छली हम ने हरखित मुदा ओकरा छलै नव उमंग।
एहि बेर कमायल बौआ हमर ढौआ ढेर,
आब ने गरीब रहली देलक दिन फेर।
देखल नहि गेलनि भगवान केँ हमर दिन,
लेला हमर मुखक मुसकी ओ छीन।
आयल फेर बौआ हमर मारि खा बम्बइ सँ,
उपर सँ तऽ ठीके छल मुदा टूटि गेल मोन सँ।
ककरा ने लगै हइ नीक अपन गाम-घर,
पेटक खातिर परदेश जाय पड़ै हइ मर।
भुखले रहब मुदा देबै ने जाय ओकरा देश आन,
अखनिये हम खेली सप्पत जा भुइयाँ थान।

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