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Saturday, April 7, 2012

मधुमाछी :: जगदीश मण्‍डल

मधुमाछी

पुष्‍प रस पीबि‍ मधुमाछी
मधुर चालि‍ चलए मधुमास।
मोहि‍-मोहि‍ रस बना मधु
बि‍लहए उपकारक आश।
माछी रहि‍तो तान मारि‍-मारि‍
गबैत जि‍नगीक गीत।
वायु सदृश गंध पसारि‍
बनैत सबहक हीत।
डंक रहि‍तो डंकि‍नी नै
जोगा मधु मधुरानी।
सबहक सि‍नेह पाबि‍ राति‍-दि‍न
महतानि‍ बनि‍ कहबए रानी।
महलक बीच संग-संग
बाँटि‍ काज चलबए दरबार।
जे जेहेन से तेहेन करि‍
पबैत स-मान परि‍वार।
उपैत धन जोगा-जोगा
महल बीच सजबए रानी।
सबहक सभ छी सभ छी एक
मुस्‍की दऽ-दऽ सुनबए रानी।
कि‍यो उपैत, करैत कि‍यो रच्‍छा
कि‍यो पसारए परि‍वार।
एक सूत्र संचालि‍त भऽ
हँसैत-बजैत बार-बार।
अजगुत मोहनि‍ छाती सजा
सि‍रजति‍ नाजुक परि‍वार।
हराएल-ढराएल बाजि‍-बाजि‍
नि‍त सजबए राज-दरबार।
ति‍याग-तपस्‍या समेत बीछि‍
जोगबए मान-सम्‍मान।
जे लेलौं से देने जाइ छी
नै कहब ि‍कयो बइमान।
की लए एलौं की लऽ जाएब
जानए जागल नैनि‍।
घर नै सजने बनबै केना
सजल घरक गि‍रथानि‍?
आबो सुनू, सुनू आबो
छाती फाड़ि‍ कहै छी।
अपने केलहा छी अधि‍कारी
सदएसँ सुनै छी।
पौरुष पाबि‍ पूजू वि‍वेक
लाज जेकर जेबर छी।
डेगे-डेग सम बना चालि‍
दि‍न-राति‍ सजबै छी।
जे जे छी से सएह छी
परखू अपन-अपन सीमा।
ककरो मनमे ई नै उठए
भसि‍या गेल बालुक सीमा।
कालक टुकड़ी सभकेँ भेटल
अपन-अपन छी रक्षक।
कलंकक मोटरी बान्‍हि‍ जुनि‍
हँसाउ नाओं बनि‍ भक्षक।
देव कतए दानव अछि‍ कतए
दुनि‍याँक सभ लीला छी।
बेमत भऽ इन्‍द्रि‍य घोड़ा
दानव देव बनै छी।

))((

(ई कवि‍ता- (मधुमाछी) श्री गजेन्‍द्र ठाकुर आ श्रीमती प्रीति‍ ठाकुर लेल..)

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