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Tuesday, April 10, 2012

पट्टा छीमी :: जगदीश मण्‍डल


पट्टा छीमी

लाले-लाल खेत देखि‍
माइक मन सि‍हकि‍ उठलनि‍।
बाधक बाट बगलि‍ बगल
खेत केराओक घीचि‍ अनलकनि‍
रंग-रंगल चास देखि‍
चासनी चि‍त्त चहकि‍ उठलनि‍
बाधक बाट बगलि‍ बगल
महक चास अनए लगलनि‍।
लह-लह लहलहाइत लत्ती
सन-सन करैत आकस देखैत
रेगहा सि‍रखार सजि‍-सजि‍
रंग-बि‍रंग फूल देखबैत।
बाला जहि‍ना वय:संधि‍ टपि‍
बाला कन्‍याँ कहबए लगैत
तहि‍ना लत्ती केराओक
रूप अपन सजबए लगैत
सजि‍-सजि‍ श्रृंगार श्रृंग
झड़ि‍-झड़ि‍ झड़ैत अधफूल।
दुख कहाँ होइ छै कखनो
मनमे पीड़ा मि‍सि‍यो भरि‍।
फुलपत्ती उड़ि‍या-उड़ि‍या
अकास सि‍र चढ़ल छै।
गंध पसारि‍-पसारि‍ अकास
अनको आकर्षित करै छै।‍
आड़ि‍ मेड़ टपैत चासनी
चास केराओक नि‍हारए लगली
रंग-सुरंग सजल लत्ती
रंग जि‍नगीक देखबए लगली।
हरि‍अर-हरि‍अर डारि‍ पात
मुँह मोती चमकै छै।
उज्‍जर-लाल फुलाएल फूल
नि‍च्‍चाँ छीमी बनल छै।
पौती जहि‍ना रूप गढ़ै छै
तहि‍ना छीम्‍मी बनैत रहै छै।
रस-फूल ससरि‍ ससरि‍
रूप दाना गढ़ए लगै छै।
छि‍लुका दाना सहजि‍-सहजि‍
छीमी नाओं धड़बए लगै छै।
पाकल जुआएल चर्च बि‍नु केने
पट्टा छीमी कहबए लगै छै
पट्टा छीमी खट्टो होइ छै
मीठो तँ हेबे करै छै।
जहि‍ना समरस बनि‍ फूल-फल
रूप समदर्शी धड़ै छै।
छि‍लुका-दानाक अगाध सि‍नेह
संग मि‍लि‍ भक्‍छ बनै छै
अपन-अपन बेवहार बि‍सरि‍
मि‍लि‍ संग जीवन दान करै छै।
))((

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