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Saturday, April 7, 2012

समए :: जगदीश मण्‍डल

समए

समए संग तखने चलै छै
संगी बना संग मि‍लि‍ चलबै।
बाट-घाट बीच देखैत-सुनैत
रस्‍सा-कस्‍सी करैत रहबै।
संगी तँ ओहन संगी छी
देखि‍ परेख जेहन चलबै।
तेहने पग पगहा पहि‍रा
आगू-पाछू चलैत रहबै।
समए ने ककरो संग धड़ै छै
ने ककरो छोड़ै छै।
अपन-अपन भाग्‍य-करमकेँ
अपने आँखि‍ये पकड़ै छै।
अपन पएर अपने नै देखब
पएर केना पग पकड़त।
पगडंडी बि‍नु पग पकड़ने
राति‍ दि‍न केना बनत?
जहि‍ना जीवन-मरण चलै छै
तहि‍ना ने दुनि‍योँ बनल छै।
नि‍र्जीवेमे जीव बसै छै
देहा-देही कहि‍ सुनबै छै।
जहि‍ना ि‍नर्जीव सजीव देखै छै
तहि‍ना सजीवो ि‍नर्जीव देखै छै।
पकड़ि‍ पएर एक-दोसरक
हँसैत-कनैत संग चलै छै।
सजीव ि‍नर्जीवक रस नै चि‍खबै
भोज्‍य रस केना बूझबै।
की खाएब की पीबि‍
बि‍नु ठेकाने जीब केना पेबै।
पाताल ऊपर सजल धरती
सात तल पातालो केर छै।
तहि‍ना सात तल अकासो ऊपर
मर्त देवलोक कहबै छै।
भूवन चौदहो बीच भरैम
लहड़ि‍ समुद्र केना पकड़ब।
पबि‍ते संगी हि‍हि‍या-हि‍हि‍या
बाट अपन केना धड़ब।
))((

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