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Tuesday, April 10, 2012

अशोक दत्त - बाल गीत



सुन-सुन-सुन-सुन एगो बात
चल रोपै छी ढ़ौवाक गाछ
लुच्चीै जेकाँ ढ़ौवा फड़तै
बढ़तै अपनो तैं दिन ठाठ
एक दिन ढ़ौवाक गाछी बढ़तै खूब झमटगर हएतै
घौर्छे-घौर्छे ढ़ौवा गाछमे फड़तै आ फल एतै
तोड़ि-तोड़ि करबै सभटा काज, सुन-सुन. . . . . . .
फुलबारीमे पोखरि खुनएबै सुन्दर घाट मढ़एबै
आम लताम जामुन संग मिठका बैरक गाछ रोपएबै
ताहिपर झुलब साथे-साथ, सुन-सुन. . . . .
बरबिघबा सन चौरमे अपनेसँ मेला लगबएबै
अजब-गजबकेँ खेल-तमाशा आ सर्कस बजबएबै
घुमएतै परी पकडि़ कऽ हाथ, सुन-सुन. . . . . .
किन कम्प्युटर सेहो अनबै, मास्टर आबि सिखए तैं
दुनिया भरिक ज्ञानसँ जे हमरो परिचित करबएतै
रहतै मोटरो गाड़ी पास, सुन-सुन. . . . .

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