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Tuesday, April 10, 2012

लक्ष्मण झा ‘सागर’ - चुट्टीधारी



ओना नहि देखबैक
हरसट्ठे उड़ैत
एक्कोटा गिद्ध।
मुदा,
जहन कोनो निर्जन
बाध-बोनमे
मुइल पशुक खाल
उधेडि़ लेल जाइए;
तँ, देखि लिअ
उड़न जहाज जेकाँ उतरैत
हेँजक-हेँज गिद्ध!!
ओना नहि देखबैक
कौएकेँ कुचरैत
कत्तहु जेर बान्हिकऽ....;
मुदा,
जहन बीच चौबट्टीपर
बिजलीक तारमे सटि
कोनो अभागल काग
हति लइए अपन प्राण....
तँ देखि लिअ
काँउ....काँउ करैत
करमान लागल कौआ।
मुदा,
हमर कविताक दृष्टि
एत्तहि टा घेरायल नहि अछि;
घरक कोनो अन्हार कोणमे
छीटल हो
चीनीक किछुओ दाना
किंवा पिचाएकेँ मरि गेल हो
अझट्टे कोनो चुट्टा!
हमर कविताक दृष्टि
पँतिआनीमे ससरैत
ओहि तुच्छ  जीवपर
अटकि जाइत अछि
जे नहि अरजने अछि
कोनो विद्या....;
मुदा, छैक तइयो
ओकरो अपन जैविक संस्कार!
हमर कविता
गिद्ध....कौआ....आ
चुट्टीक संसारकेँ
भजारि रहल अछि!
संवेदना
सिद्धान्तक चुल्हिमे
आदर्शक आगि
पजारि रहल अछि!!

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