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Tuesday, April 10, 2012

बेथा :: जगदीश मण्‍डल


बेथा

पुछत के केकरा यौ भाय
अपने बेथे सभ बेथाएल।
घसा-घसा चानी बनि‍ टलहा
चीन-पहचीन सभ हराएल।
कोन कष्‍ट कि‍नका पकड़ने
देखि‍नि‍हारो बौआएल छथि‍।
रंग-बि‍रंगी चश्‍म दृष्‍टि‍
मने-मने हराएल छथि‍।
दि‍अए पड़त दृष्‍टि‍ धरती
तीन-दि‍शा तीनू चलए।
आत्‍मि‍क भौति‍क ओ देवी
जगह पाबि‍ तीनू खेलए।
एक खेले तन-मन केर भीतर
दोसर करए तेज परहार
तेसर तीनू बाट घेरने
रोकि‍-रोकि‍ बि‍लहए उपहार।
तत्‍व कहैत मुँह खोलि‍-खोलि‍
तीनूक तीनू छी तकरार।
खोलि‍ आँखि‍ अगात देखि‍
फुलाएत अभि‍मन्‍यु भकरार।
कहाँ अछि‍ कठि‍न बाट जि‍नगीक
चि‍क्कन चालि‍ चलैत चलू।
जि‍नगी तँ पानि‍क बुलबूल्‍ला
परेख-परेख‍ छाती धरू।
     ))((

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