अकलबेड़ा
दिन-दिनक मध्यांतर जहिना
राइतियो राति तहिना पबै छै।
सिर चढ़ि दिनकर देखए जब
अकलबेड़ झटकि झमकै छै।
जबकल जल पोखरि जहिना
झील-सरोवर हँसि कहबै छै।
तहिना ठमकि दिवा निशाकर
अकलबेड़ तहिना कहबै छै।
ठमकल हवा कहाँ कहै छै
मुदा, हवा बनि हवा भरै छै।
भरिते हवा भरैक-भरैक
हुरैक-हुरैक धार धड़ै छै।
बनिते धार धारण करै छै
चुट्टी-पिपड़ी संगे उड़ै छै।
जीवन-मरण सिरजि-सिरजि
स्वच्छ गति स्वच्छन्द चलै छै।
जल जलमग्न करै छै
हवा तेना कहाँ करै छै।
मुदा, अकास-पताल बीच
शीतल कोमल प्रचण्ड होइ छै।
धार धरतीक समेटि-समेटि
अकास चढ़ि सुरसरि बहबै छै।
सुरसरि बनि अकासगंगा
नव थल हृदए पसझै छै।
अपना पएरे सभ चलै छै
अपने लए सेहो चलै छै।
अबिते भकमोड़ी-मोड़ बीच
अकलबेड़ ठमकए लगै छै।
बाजि महाभारत कहए जेना
दृष्टिकूट चौमेर बनल छै।
सए-सएक बीच सजि-सजि
आगू-पाछू सेहो जोड़ै छै।
ओइ चौमेरक बीचो-बीच
अॅटकैक अॅटकार बनल छै।
बिनु अॅटकारे बूझि ने पेबै
दसो दिशा ओ देशांतर।
एक-दोसरकेँ जानि ने पेबै
बाम-दहिन बीचक अन्तर।
जिनगीक बीच जलमग्न सजल
भवसागर नाओं धड़बै छै।
बिनु टपान टपि केना पेबै
कानि कलपि प्रेमी कहै छै।
बिनु पुले रामो ने पौलनि
पुष्प-बाटिका बीच सीता।
दिन-राति चिकैर-चिकैर
कण्ठ फाइड़ गबै छै गीता।
गुण-मंत्र अमुल्य औषधि
देखा देलनि सेवक हनुमान।
बना मार्ग हनुमन भक्त
पौलनि देवत्वक सम्मान।
भवसागरकेँ पार पबैले
नाव तीन लागल छै।
नारद-व्यास ओ हनुमान
अपन नाव रखने छै।
काया-माया संग चलै छै
छाॅह बनि रूप सेहो धेने छै।
देखिते छाॅह छिछलि-छिछलि
छोड़ि संग छिड़ियाए लगै छै।
तँए की ओ फेर संग छोड़ै छै
हटिते छाॅह लपैक-लपैक
जत्र-तत्र पकड़ै छै।
आँखि मिचौनी खेल-बेल
कुदि-कुदि दिन-राति करै छै।
छैल-छबिली छमैक-छमैक
पानि-पाथर बनबै छै।
जे पाथर शिव भार उठाबए
कैलाश नाओं धड़बै छै।
वएह पाथर पानि बनि-बनि
अगम सागर सेहो कहबै छै।
जे पाथर उठबए भार शिव
पानि बीच डुमबै छै।
पाबि ताप सूर्जक प्रखर
हवा बनि-बनि उड़ै छै
पहाड़ सागर बनिते बनैत
सिर अकास चढ़ै छै।
घुमैड़-घुमैड़ अकास बीच
दूत, मेघदूत कहबै छै।
अलकापुरी अॅटैक-अॅटैक
प्रेमाश्रु धार बहबै छै।
तँए कि ओ बिसरि जाइ छै
गुण, धर्म ओ कर्मक मर्म।
एक-एककेँ समेटि-समेटि
सभ दिन बॅचबए अपन धर्म।
बनि पाथर अकास बनबै छै
अकास पाथर कहबै छै।
झहरि-झहरि-झहरि सदए
किछु ने शेष रखै छै।
आँखि मिचौनी खेल खेला
जल थल नभ दौगै छै।
तहिना ने हृदैओ सदए
अपन चालि चलै छै।
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