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Saturday, April 7, 2012

गरीबी :: जगदीश मण्‍डल

गरीबी

गरीबीक गुरु-आश्रम बीच
भट्ठेसँ पढ़ैत एलौं।
भोरे उठि‍ प्रणाम करै छि‍यनि‍
मनक असीरवाद पबैत एलौं।
राति‍-दि‍न सुरता लगौने
सदि‍खन चर्च करै छि‍यनि‍।
उठि‍ते चर्च अपने आबि‍-आबि‍
जन्‍म–अजन्‍मक बात कहै छि‍यनि‍।
आँखि‍क आगू गुरु-गरीबीक
सुतलमे जगबै छथि‍।
दू-दि‍सि‍या चालि‍ मनुखक
पकड़ि‍ बाँहि‍ कहै छथि‍।
अमीर-गरीबक चालि‍ दू-दि‍सि‍या
कखनो अमीर, कखनो गरीब बनैत।
भाग्‍यक रेखा अगम-अथाह छै
हँसि‍-हँसि‍ सदि‍खन सुनबैत।
गरीबी सत्-मार्ग चलबैए
हँसि‍ कु-मार्ग अमीरी धड़बैए
भेद-कुभेद भेद बि‍नु बुझने
सुमार्ग कहि‍ कुमार्ग चलबैए।
जेकरा ढौआ ढन-ढन करए
ओ केना पहुँचत मधुशाला।
चि‍कड़ि‍-चि‍कड़ि‍ गरीबनाथ कहए
भोजन नै छी सुआद मशाला।
अपने हाथे पकड़ि‍ बाँहि‍
सीमा सरहद देखि चलबैए।
अपन आड़ि‍-मेड़ अपने पकड़ि‍
हँसि‍-हँसि‍ अपन चालि‍ धड़बैए।
जेकरा अहाँ अमीर बूझै छी
नै छि‍ऐक ओ अमीरी।
आ ने जेकरा गरीब बूझै छी
नै छि‍ऐक ओहो गरीबी।
बुद्धदेव कि‍अए राज-पाट छोड़लनि‍
जँ अभावेकेँ गरीबी कहबै।
भि‍क्षुक बेना पकड़ि‍ कि‍अए
जि‍नगी भीखमंगाक बनबैए।
गरीबीक जे राह पकड़ि‍-पकड़ि
राही बनि‍ रनि‍बास चलैए।
ब्रह्मा, वि‍ष्‍णु ओ शि‍वदानी
पदे-पद दर्शन पबैए।
यएह गरीबी आ अमीरीक
धड़-धड़ जीवन धार बहैए
सागर-गंगा हराएल कहाँ
ति‍ले-ति‍ल चलैत रहैए।
   ))((

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