ओ दिन
ओ दिन, ओ दिन छी,
जइ दिन भयक प्रेमी देखलौं।
ओ दिन, ओ दिन छी,
जइ दिन भयसँ यारी केलौं,
दर्शन पाबि भैयारी केलौं।
माघ मास राति सतपहरा
आशाक आश भैयारी देखलौं।
ओ दिन, ओ दिन छी,
संग सटल भैयारी देखलौं।
जेकर सिर सोर बनि
पानिक संग पताल पहुँचए।
सिसकि-सिसकि, संग आशाक
जिनगीक संग जीबैत चलए।
संग मिलि हँसए,
गबैत चलए संग-संग।
राति-दिन सहन सिरजि
कूदि-कूदि कुदैत संग।
घर भैयारी, बाहर भैयारी
संगी, मित्र-दोस्त कहबैत।
प्रेमाश्रु संग ढुलकि-ढुलकि
धरती बीच नाओं धड़बैत।
सिर उसरगए मिलि संग
वीर-शहीद कहबैए।
मातृभूमि ओ पितृभूमि बीच
सेवा कऽ जगबैए।
बजिते एक देबाल घड़ी
घरक घंटी घुनघुनाएल।
पकड़ि कान गुनगुना-गुना
रणभूमि-कर्मभूमि देखाएल।
सातो घर सजल सेज
देखते मन तड़पि उठल।
दलदल करैत दलकीमे
चिचिया-िचचिया चहकि उठल।
अछि कठिन कर्मक परीक्षा
मुदा, सफल हएब नै कठिन।
विचार सहजि सुता
समटि-समटि कएल एकठीन।
बेंग सदृश कुदए लगैत
तरजू कला समेटि धड़ब।
कलाकारी छी, मोचना कठिन
आङुरसँ पकड़ि धड़ब।
जिनगी परीक्षाक ओ घड़ी
जइ दिन जिनगी नाओं पड़ए।
जागल-सुतल बीच दुनूक
जागलनाथ काज धड़ए।
नीक काजक नीक फल
एक्के आँखिये दुनियाँ देखैत।
कनाह कहू आकि समूह
देखि-देखि लगैत समोह।
साध सिरजि साधक सदति
फूल वृक्ष सजबैए।
सिरजि शक्ति, शक्ति संग
सदति भक्ति करैए।
))((
No comments:
Post a Comment