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Wednesday, April 11, 2012

डायरी :: जगदीश मण्‍डल


डायरी

मनक डायरी लि‍खए बैसलौं
उपहारक डायरी नि‍काललौं।
रंग-रूप देखि‍ डायरीक
ऊपरे-ऊपरे भसए लगलौं।
भसैत-भसैत-भसैत
मनक बात बि‍सरए लगलौं।
छपल फूल गुलाब कली
बि‍हि‍या-बि‍हि‍या देखए लगलौं।
सुर-सुर करैत सुरसुरी आबि‍
नाकर छोर खि‍चए लगल।
रस-गंधक भूख जगा
भूखल मन तरसए लगल।
ताकए लगलौं रस कलीमे
सादा कागज बनल-पड़ल।
सीख-लीख नै परेखि‍ पेलौं
अखनो ओहि‍ना बैसल पड़ल।
गुन-गुन गुनगुनाए लगलौं
जगल अपन डायरी मनमे
हाँइ-हाँइ पन्ना उनटेलौं
कलम खोलि‍ वि‍चारल मनमे।
तही बीच आँखि‍ पड़ल पन्ना
चार्ट बना टांगल देखल
अपन मनक चार्ट नै देखि‍
अदहन मन उधि‍आए लगल।
आखर अंति‍म मन पड़ि‍ते
कलमक हाथ घुसकए लगल।
अनका असे कते दि‍न बीतल
मनक हि‍साब उठए लगल।
      ))((

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