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Saturday, April 7, 2012

सगर राति‍ दीप जरय :: शि‍व कुमार झा 'टि‍ल्‍लू'


सगर राति‍ दीप जरय

राति‍ माने कारी पहर
गत्र-गत्र शांत
जीव अजीव आक्रांत
रजनीक लीलासँ
क्षणि‍क बचबाक लेल
लोक जरबैछ दीप
सभ्‍यताक वि‍कासक संग-संग
मनुक्‍खक चेतनशील होइत गेल
पहि‍ने इजोतक लेल...
खर-पुआर जारनि‍
लत्ता नूआ फट्टा
सूत छोड़ि‍ रूइयाक बाती
ढि‍बड़ीक बदला लेम्‍प
बहकैत रोशनीमे गबैत पराती
बुि‍धक वि‍कास भेल...
वि‍द्युत तरंगमे
गैसक उमंगमे
वि‍ज्ञानक जय भऽ गेल...
सभ ठाम इजोत
मुदा! वैदेहीक घर अन्‍हार
मात्र लि‍खते रहब
ककरोसँ नै कहब
के बूझत कथाक वि‍कास
ककरो नै छल आभास
दधीचि‍ बनि‍ साङह लेने
आबि‍ गेलनि‍
मैथि‍ली कथा जगतमे प्रभास
सुरुज दि‍न भरि‍ अपन
करेजकेँ जड़ा कऽ
नै मेटा सकल
ऐ वसुन्‍धरापर सँ
वि‍गलि‍त मानुषक प्रवृत्ति
प्रभास दीप बारि‍
अपन करूआरि‍ सम्‍हारि‍
कथा सागरक जमल तरंगमे
दि‍अ लगलनि‍ हि‍लकोर...
समाज जागत- ई छल वि‍श्वास
मुदा नै आदि‍ भेटलनि‍
नै भेटलनि‍ छोर...
कि‍नछेरि‍पर अपस्‍यि‍ात
कथाकार लऽ लेलनि‍ ि‍नर्वाण
जागरणक आशामे
कहि‍यो तँ सुखतनि‍
वैदेहीक झहरैत नोर...
चलि‍ गेला अभि‍लाषा लेने
उत्तराधि‍कारी सभ खेलाइत छथि‍
अट्ठा बज्‍जर करि‍या-झुम्‍मरि‍
उद्यत छथि‍ अधि‍कार हरबाक लेल
पाग पहि‍रबाक लेल
सगर राति‍ दीप जरय...
रणम-वि‍भूति‍ गेरुआ
गर लगौने छथि‍
महेन्‍द्र मसनद पजि‍औने छथि‍
समालोचक- उद्घोषक सूतय
मात्र वाचक मंच चि‍करय...
कहैत छथि‍ बुढ़ छी
तखन गोष्‍ठीमे आबि‍
नाटक करबाक कोन प्रयोजन?
दीप बारि‍ दुआरि‍ नै जराउ
जे जगदीश जागल रहत
ओकर गामक जि‍नगी के सुनत?
ओ अछि‍ समाजक कात
कहि‍यो होमए देब
ओकर साहि‍त्‍य साधनाक प्रभात
कि‍एक तँ ओ थि‍क वेमात्र
जइ माटि‍क अन्‍हारकेँ
सुरुज नै हटा सकल
ओ केना हटत माटि‍क दीपक बल...?
जौं दृष्‍टि‍कोणमे रहत छल
तँ वि‍वेक केना ि‍नर्मल?
ओइ कठकोंकारि‍ सबहक बीच
मैथि‍ली छथि‍ दुबकल

सगर राति‍ दीप जरय

अन्‍हार घर संस्‍कार सड़य

कथासँ केना पारस ि‍नकसय...?

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