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Saturday, April 7, 2012

कामना :: राजदेव मण्‍डल


कामना

अपन-अपन कामना सबहक पास
धरतीसँ पसरल अकास
बढ़ले जा रहल मासे मास
होइते बाधा दुखक आस
आस ि‍नरास तैयो आस- जि‍नगीक पाश
नि‍बुधि‍या पोता फानि‍ कऽ बजल-
यौ, बाबा आबि‍ गेल फागुन मास।
हँ रौ बौआ रौदा भऽ गेल
आब हएत जाड़सँ उबरास
परसाल कहाँ भेल छल जाड़
ऐबेरक जाड़ तँ देहकेँ कऽ देलक तार-तार
घुरमे जरि‍ गेल सभटा लार-पुआर
लगै छल नै बँचत जान
लीलसासँ भरल छल खान
दुनू बेटा भऽ गेल जुआन
हमरो बढ़ि‍ गेल सामाजि‍क शान
पलि‍बारक भार उठौलक कान्‍ह
आब नि‍चेन भेल हमरो जान
टहलब, बुलब कि‍छु करब दान
गाबि‍ सकब सुखसँ भक्‍ति‍ गान।
यौ बाबा नै करू लाथ
हमरा कहू एकटा बात
झगड़ा केलक बाबूसँ काका
माँगैत रहै तीन हजार टका
कहै छलै- तोहर नै ठीक‍ रहलौ ईमान
भऽ गेलह पूरा बेइमान
बाबू अछि‍ सभ झगड़ाक जड़ि‍
सनकेलकौ तोरा जि‍नगी भरि‍
ऐ जाड़मे करतौ ओ परलोक बास
बाँटि‍ लेबो सभ चास-बास
अपन-अपन चास, अपन-अपन बास
देखि‍हेँ सि‍नेमा खेलि‍हेँ तास
अपना सम्‍पति‍केँ करि‍हेँ नाश
बाबा ठीके करबै परलोकबास
बीतल जा रहल जाड़क मास।
घुमए लगलै माथक चाक
बाबा भेल अवाक्।

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