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Tuesday, April 10, 2012

अशोक दत्त - ओधि उपाड़


उपहास करैत इतिहासक
नितरा रहल अछि
सफलतापर,
सफलता
जे छैक
पानिक बुलबुल्लाा जेकाँ।
सन्हिआएल छै अदंक
कोँढ़मे
उड़ल छै निन्न
तकने घुरैछ सुरक्षा कवच
मुदा, उताहुल भेल अछि
मुँहमे जाबी लगा कऽ
मेहमे बान्हल बड़द जेकाँ
जोतबाक लेल,
छै दश-पाँच गोट
लगुआ-भगुआ
छै बन्दुक
ते फेकैए गुड़-चाउर
मने-मन
नित नवीन आडम्बरक।
नइँ छै चौवन्नी भरि जनाधार
तैयो नितरा रहल अछि,
सफलताक नाम दऽ
अतीतकेँ गुनैत
वंश बढ़बऽ मे उनमत्त।
बुझैत अछि ओ
करची पङने
दू-चारि गोट बाँस कटने
नइँ उपटै छै बाँस
तेँ नितराइत अछि
बनल अछि ढीठ।
देश उएह अछि
परिवेश नव
देखैत छल पहिनहुँ
करूआइत छलै आँखि
आब बूझऽ लागल अछि
बच्चासँ बुढ़ धरि
नइँ होइत छै फूल बाँसमे
नइँ होइत छै सुगन्धो
नइँ लगैत छै फल
मुदा, पनपऽ नइँ दैत छै ककरो
अपना लगमे
मात्र बढ़बैत अछि
अपन साम्राज्य।
आब करची पड़लासँ नइँ
दू-चारि गोट बाँस कटलासँ नइँ
उपटाबऽ पड़त ओधि
जड़िसँ कोरि कऽ
तहन फुलएतै फूल
छिरिअएतै सुगन्धि
लगतै फल
मुस्किअएतै ठोर।

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