Pages

Sunday, April 8, 2012

केना मेटत गरीबी :: जगदीश मण्‍डल


केना मेटत गरीबी

केना कऽ मेटत गरीबी हो भैया
केना कऽ......।
अछि‍ भरल सोना मि‍ट्टीमे
भरल अछि‍ हीरा-मोती।
खुनैक ओजारे अछि‍ गजपट
केना कऽ पेबै मोती।
सोन बि‍ना कानक जहि‍ना
तहि‍ना ने माटि‍यो छै।
ने अछि‍ पानि‍ आ ने श्रम छै
ने खाद आ ने बीआ छै।
तखन कोन आस करबै हो भैया....
सत्ते कहै छी ओजारो बनलै
नहर खुनेलै कोसीसँ।
धारक तँ चालि‍ये अजीब
बि‍नु बरखे पानि‍ आओत कतएसँ।
खादक बदला माटि‍ अबै छै
बोरि‍ंगक पाइपो तेहने नकली छै।
पम्‍पि‍ंग सेटक कथे की कहब
तीन बेर साले सि‍सकै छै।
अहीं कहूँ केना हेतै यौ भैया
केना कऽ...।
बि‍नु खेतक आकार देखने
फसि‍लक केना पहचान करब।
उपजल दाही जखने हेतै
कोठीक कि‍अए जोगार करब।
वि‍ज्ञान बहुत उन्नति‍ केलकहेँ
सच्‍चे कहै छी यौ भैया।
घासे बि‍खाह उपजि‍ खेतक-खेत
कोन मनसूबे दुहबै गैया।
केना कऽ.....।

ललो-चपोसँ काज नै चलत
इमनदारीक नेत बनाएब।
फुलल-फड़ल खेत चमकत
देखि‍ वसन्‍ती तखन गीत गाएब।
ता धरि‍ नै चलतै यौ भैया,
ललकारा कतबो देबै।
टाल ठोकि‍ कतबो कुदब
खलीफा नै बनि‍ पेबै।
सएह कहै छी सुनू यौ भैया
केना कऽ......।
   ))((

No comments:

Post a Comment