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Sunday, April 8, 2012

कवि‍ता :: जगदीश मण्‍डलक कवि‍ता


कवि‍ता

नव पथक अनुकूल पथि‍ककेँ
सही सवारी सुपथ-पथ चाही।
तहि‍ना खुशी खुदखुदबए लेल
मुस्‍की सजल शब्‍द कवि‍ता चाही।
उपयोगी नव-नव वस्‍तुक
जोड़ि‍-जाड़ि‍ छि‍हलैत डगर चाही।
हराएल रसि‍क प्रेमी-ले
बेराएल भाव कवि‍ता चाही।
बेराएल भाव तहि‍ये सजैत
जहि‍ये भेटैत छि‍ड़ि‍याएल भंडार।
चुनि‍-चुनि‍ चुनि‍या चुनैबतहि‍
नुकाएल पबैत शब्‍द-सार।
गढ़ैत सदति‍ चमचमाइत शब्‍द
सि‍रजए अलंकार ओ छंद।
चाहे कतबो केहनो हवा सि‍हकै
चलि‍ते रहैत‍ मुस्‍काइत मन्‍द।
मन्‍थर गति‍ये चलि‍ मोहनि‍
परखए सदए दुध ओ पानि‍।
सि‍र ऊपर आकि‍ नीच-मध्‍य
देखि‍ पकड़ि‍ सम्‍हारि‍-वाणि।

    ))((

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