Pages

Tuesday, April 10, 2012

आरती :: जगदीश मण्‍डल


आरती

हे आशुतोष भगवान अहाँ, हे आशुतोष....
बहति‍-बहति अश्रुभूमि‍ सुखि‍ गेल
कि‍ लए आरती उतारब।‍
कनैत-कनैत कननमुँह मौला गेल
सुआगत कि‍ लए करब?
हे आशुतोष भगवान अहाँ, हे आशुतोष....
सभ दि‍न दुखक तर दबेलौं
सुखक सुख कहि‍यो ने पेलौं।
चुहटि‍ हृदए तोष पकड़ि‍
मनुखक गति‍ कहि‍यो ने पेलौं।
हे आशुतोष भगवान अहाँ हे...
चहकि‍-चहकि‍ हृदए चहकि‍
बेथा अपन सुनबैए।
अन्‍तो–अन्‍त उताड़ि‍ आरती
सि‍हरि‍-सि‍हरि‍ सुनबैए।
हे आशुतोष भगवान अहाँ, हे आशुतोष....
धीर होइत धीरज मेटा गेल
थीर होइत वि‍वेक थकुचा गेल।
झड़कि‍-झड़कि‍ ज्ञान झड़कि‍
पड़ले-पड़ल सभ सड़ि‍ गेल।
हे आशुतोष भगवान अहाँ, हे आशुतोष....।
))((

No comments:

Post a Comment