पितृपक्षक भोज
अमावास्या आसिन केर
बीतते भोजक लगल ढबाहि।
आन-आन ओरियानक संग
महाजनी चाउरक लगैत सवाइ।
गाम-गामक महाजनोक
रंग-बिरंगक हुकूम चलैत।
कतौ सवाइ तँ कतौ
डेरही, पौन-दोबर चलैत।
जेकर लाठी तेकर भैंस
खाली ई खिस्से नै छी।
पइस नहाएब जखन पोखरि
तखैन बुझब अपने ने किछु छी।
मुदा गुन भेल, भाय हमरा
जाति-जातिक रग्गड़ मचल।
काटि-छाँटि एकबाहि केलक
मनमे खुशीक तूफान मचल।
जाइतियो तँ जाइतिये छी
दिन-राति रग्गड़ करैत।
समए पाबि जहिना सिंगरहार
खुशी-खुशी अपने झड़ैत।
गाममे जाति असकर
असकर अछि दियादी।
बिनु भोजे उद्धार सभकियो
बाबा, काका, भैया आदि।
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