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Tuesday, April 10, 2012

रघुनाथ मुखिया - दूधक धार



हम देखैत छी हमरा सोझाँमे
दूध आ अन्नक लेल
हमर दूधमुँहा नेना कोना छटपटा रहल अछि हमर कोढ़ ओहिखन फाटि जाइछ जखन ओ अपन आंगनक ड्योढ़ी दिस अपन तुरियाक दूध आ भातबला कटोरा दोड़िकेँ छीनऽ चाहैत अछि आ हमरा चिन्हबऽ लगैत अछि दूध आ भात
ओकर रंग आ स्वाद ओहिखन मोन होइत अछि जे
हमरा कानमे पसिझल पाथर
किएक नञि भरि देल गेल वा ई गप्प सुनबासँ पहिनहि
हमर प्राणपखेरू किएक नहि उड़ि गेल?
किएक तँ
कलम क्रांति उठा सकैछ शांतिक समुद्र लहरा सकैछ
बुद्धक लहाँस खसा सकैछ नवनव सृष्टिक विनाश आ निर्माण कऽ सकैछ शोणितक धार बहा सकैछ मुदा शिशुक लेल
दूधक धार जुटाएब ओ संभव अछि कलमसँ

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