कहैत छथिन
जोतखी–पण्डित
पोथी–पतरा
उचारिकेँ
एहिबेर
भगवती एतीह मनुखपर।
तखन
हम कहलिअनि
कोशीक बिपटल
मशान बनल एहि भूमिपर
हेराएल–भुथिआएल
लच्छक–लच्छ
अनचिन्हार लहासक
हिसाब–किताब
देबाक लेल
आब ओ
नञि औतीह मनुख दिस।
किएक तँ
हुनके बहिन कोशी
हुनका संगे छऽल केने
संहारिणीक रूप धेने
गाम–गाम
सुड्डाह करैत
लच्छक–लच्छ
लहास हेलबैत
सवा मास पहिनहि
कुशहासँ सवार भेल
चल एलीह मनुखपर।
आब ओ
ओहि हाड़क–हार
सजेबामे लागल रहतीह
शोणितक नीसाँमे
माँ तल आ बिसरल रहतीह
आगाँमे कल जोड़ने ठाढ़ भेल
त्रस्त अरदसुआ सभकेँ
अगिला आवाहन धरि।
एम्हर बगुला भगत सभ
जान बकसि देबाक लेल
गोहारिक आश्वासन दैत
सहयोगक अक्षत छीट रहल अछि
आ, धीरज धरबैत अछि जे
आब अहाँ सभक फूल हासि जरूर हेतै
अपन–अपन
डालीमे
पान–परसाद
सजौने
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