Pages

Tuesday, April 10, 2012

गंगा वंदना :: जगदीश मण्‍डल


गंगा वंदना

जुग-जुग आस लगौने मइये
शीत-रौद चटैत एलौं
लुप्‍त भेल नयन-ज्‍योति‍।
हे मइये...
रेगहा टा जपैत एलौं।

गंगाजलीमे नीर बोझि‍
सि‍क्‍त करब दसो दुआरि‍।
आंगन-घरक संग-संग
नीपब गोसौनि‍क चौपाड़ि‍।
हे मइये...
हँसैत, गबैत, नचैत, भसैत
पहुँचब तोर दुआर
मुदा फँसि‍ मकड़जालमे
बन्न भेल सभ बकार।
हे मइये...
दसो दि‍शा अछि‍ घेराएल
अकास बहैत देखै छी
मुदा ससरि‍ गेल भूमा
कानि‍-कानि‍ गबै छी।
हे मइये...।
))((

(श्री राजनन्‍दन लाल दासक अठहतरीम जन्‍म दि‍नपर...)

No comments:

Post a Comment