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Tuesday, April 10, 2012

सतीश चन्द्र झा - ई जीवन



भेल व्यर्थ ई जीवन लऽ कऽ जन्म जगतमे।
नहि केलहुँ किछु काज व्यथा ई रहल हृदएमे।
बीतल बचपन उड़ल संग टिकुलीकेँ धेने।
कखनो मस्त मलंग खेलमे जोर लगेने।
आबि गेल चुप चाप उतरि कऽ यौवन कहिया।
चौंक उठल मन भेल भविष्यक आहट जहिया।
लगा लेलहुँ संपूर्ण जोर ताकत छल जतबा।
अछि की कम संघर्ष करब परिवारक सेवा।
अन्न, वस्त्र, भोजनक करिते उचित व्यवस्था।
बीति गेल जीवनक सभटा नीक अवस्था।
छै कर्मक ई खेल भाग्यकेँ कोना मेटेबै।
भाग्य प्रबल छै कहि कऽ ककरा केना बुझेबै।
किछु जीवनक दोष देवता छथि किछु दोषी।
करिते रहलहुँ कर्म सतत् किछु कम आ बेसी।
भेटल किछु सम्मान, मान लऽ कऽ अछि भूखल।
होइ छै एखनो सुनू, अर्थसँ सभटा प्रतिफल।
कहाँ शक्ति छनि सरोस्वतीकेँ असगर अपना।
सभसँ ऊपर ठाढ़ लक्ष्मी सबहक सपना।
जिनका जतबा अर्थ पैघ छथि जगमे नामी।
बिना अर्थ सभ व्यर्थ, दुखक जीवन अनुगामी।
आब सोचि की करब उम्र उतरल अगुता कऽ।
वानप्रस्थमे जाएब किछु संताप उठा कऽ।
हम रहलहुँ अभिलाषी भवमे मोक्ष मार्ग के।
चलिते रहलहुँ हम घिसिया कऽ पथ सुमार्ग के।
की भेटल अभिमान करब जकरा ले की हम।
पेट पोसि कऽ मात्र बितेलहुँ ई जीवन हम।

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