ओ जनानी....
हमर भाउज थिक
से बूझलए सभकेँ
तैयो, कनफुसकी देखि
चोन्हराय छी, किऐ, एना?
देखनाइये-ए तँ देखू ने....
सिनेमा हॉलमे
पार्क आ होटलमे
स्कूल–कॉलेजमे
आ मंदिर परिसरमे
देखू–देखू
ने
घरमे, बाहरमे....
गाम आ शहरमे
खेत–खरिहानमे....
कोना–कोना
होइत रहै-ए
छौड़ा–छौड़ीमे
कनफुसकी
मुंसा–मौगीमे मशखरी
आ नेना–भुटकामे मुँहदुशी
ओना, हमरा
बूझल-ए
ई सभ अहाँकेँ नीके लागत
किऐ तँ, अहुँ....
एहि युगक छी
बस हमही–टा अहाँकेँ
सतयुगी बूझि पड़ै छी
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