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Tuesday, April 10, 2012

सच्चिदानन्द ‘सौरभ’ - देखू नै....



ओ जनानी....
हमर भाउज थिक
से बूझलए सभकेँ
तैयो, कनफुसकी देखि
चोन्हराय छी, किऐ, एना?
देखनाइये-ए तँ देखू ने....
सिनेमा हॉलमे
पार्क आ होटलमे
स्कूलकॉलेजमे
आ मंदिर परिसरमे
देखूदेखू ने
घरमे, बाहरमे....
गाम आ शहरमे
खेतखरिहानमे....
कोनाकोना होइत रहै-ए
छौड़ाछौड़ीमे कनफुसकी
मुंसामौगीमे मशखरी
आ नेनाभुटकामे मुँहदुशी
ओना, हमरा बूझल-ए
ई सभ अहाँकेँ नीके लागत
किऐ तँ, अहुँ....
एहि युगक छी
बस हमहीटा अहाँकेँ
सतयुगी बूझि पड़ै छी

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