उन्नति केलक गाम आब शहर लगैए,
लोक-लोक मे भेद आ जहर बढैए ।
निधोख बुलै अछि चोर रखबार दम सधने,
औंघायल कोतबाल धरि पहर पडैए ।
निट्ठाह पडल अछि रौदी जजाति जरै अछि,
पानि ने फानय धार से छहर पडैए ।
अमावस्याक राति की इजोतक आशा,
सगरो पसरल धोन्हि दुपहर बितैए ।
अपनो गाँव मे लोक बनल अनचिन्हार सन,
अनटोला केर लोक देखि क’ कुकुर-मुकैर ।
No comments:
Post a Comment