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Thursday, December 27, 2012

समाज सजल :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


समाज सजल......

समाज सजल छै छि‍पाड़-उकट्ठी
छीप-उकठपना बेवसाय बनल छै।
रंग-बि‍रंग समाज गढ़ि‍-मढ़ि‍
रंग-रंग छीप कटैत रहै छै।
भाय यौ, रंग-रंग......।
आस-वि‍यास बनि‍ते जहि‍ना
चोर-माखन कृष्‍ण कहै छै।
गोप-गोपी बीच उमकि‍
कहि‍ उमकि‍ उकठपन कहै छै।
भाय यौ, कहि‍ उमकि‍......।
भावो लोक तहि‍ना भवए
मारि‍ सेन्‍ह काटि‍ कहै छै।

शास्‍त्री, शब्‍दशास्‍त्री कहि‍

कर्ता-धर्ता ब्रह्म कहै छै।

मीत यौ, कर्ता......।

Wednesday, December 19, 2012

अनचिन्हार आखर

माँझ आंगनमे कतिआएल छी

हम पुछैत छी

निश्तुकी

रथक चक्का उलटि चलै बाट

हमरा बिनु जगत सुन्ना छै

वर्णित रस

क्षणप्रभा

कलानिधि

नव अंशु

मोनक बात

अर्चिस

अम्बरा

कियो बूझि नै सकल हमरा

तीन जेठ एगारहम माघ

रातिदिन

गीतांजलि

इन्द्रधनुषी अकास

विदेह मैथिली पद्य (तिरहुता वर्सन)

विदेह मैथिली पद्य 2009-10

विदेह मैथिली पद्य 2009-10 (तिरहुता)