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Sunday, November 2, 2014

कवि रसिक लाल सदाय

श्री रसिक लाल सदाय (अवकाश प्राप्‍त शिक्षक) गाम- परमानन्‍दपुर, पोस्‍ट- नवानी भाया- तमुरिया, जिला- मधुबनी (बिहार) निवासी छथि। हिनक जनम तिथि- ०८/०७/१९५२ अछि। लालदास जयंती समारोह- आइसँ चारि दिन पहिने, खड़ौआ-मे आयोजित कवि सम्‍मेलनमे हिनका संग भेँट भेल। आयोजिक गोष्‍ठीमे अपन कविताक पाठो केलनि सभ कियो सराहबो केलकनि मुदा मात्र एक गोट कविताक पाठ करबाक अवसरि देल गेलनि। अनुनय तीनू लेल केने रहथिन, समैक टान दुआरे सम्‍भवत: अवसरि नै देल गेलनि। मुदा एतए तीनू प्रकाशित कएल जा रहल अछि-   


दीनक दुर्दशा


जे अति दीन तेकर दुर्दिन,
दिनानुदिन
ओ धन बल हीन कृष गात
कृषक मलीन
से करत की सामंत युगमे
मन मारि-हारि
बैसल विचारि
की कऽ सकैछ, नै दऽ सकैत
की किछु लऽ सकैत, कड़ पसारि
हक मारल अछि सभठाम जेकर
मेहनत-मजदूरी चारूठाम जेकर
मुँह ताकि बिधुआएल ठाढ़
कियो अछि जे सुधि लेत एकर।
स्‍वार्थी अर्थी नेता नायक, अपने पेट कुरियबैत
किन्‍तु गरीब मौन भऽ बैसल, किछुओ ने बूझि पबैत
सरकारो अछि भोंमा शंख, जे ढोल पीटि परचार करैत
मुरखाहा संग पढ़लोहोकेँ, धोखा दऽ चटकारैत
हमर बनौल हमरे हक खा कऽ, हमरे ओ परतारैत
मंगलापर फटकारैत,आशा दऽ कऽ टारैत
भीतरे-भीतरे मारैत अछि, अपन दाउ सुतारैत अछि 
की कहब हौ भाय, सभ गहुमन सन फुफकारैत अछि। 



अनुभव


लिखलौं-पढ़लौं किछु बचपनमे
आब की लिखू, की पढ़ू की सीखू
सुधि बुधि सभ हेराएल
करम-जालमे सभ बिसराएल
दू-चारि बाल-गोपाल भेल जखनि
कर्तव्‍यक भार माथ पड़ल तखनि
परि गेलौं हम बड़का उलझनमे
लिखलौं-पढ़लौं...।

की करू नै करू, मन कछमछ करैए
नीन नै नयन मनमे चिन्‍ता रहैए
उठि-उठि बैसै छी, टुक-टुक तकै छी
मनै छी नै जीबै छी, कहुना दिन कटै छी
मुदा तैयो नै शान्‍ति पबै छी एको क्षण
पाँच-दस-पनरह-बीस, केना बितल उमर पचीस
खेती-पथारी दुनियाँ-दारी, केना भरत पेनकट्टा बखारी
जे किछु केलौं वा नै केलौं, बहुत कमेलौं बहुत गमेलौं
आब की करब उमर पचपनमे
लिखलौं-पढ़लौं...। 


स्‍कूल गीत


चल-चल चल बौआ स्‍कूल पढ़ैले
चल-चल चल बुच्‍च्‍ाी स्‍कूल पढ़ैले
पढ़ै-लिखैले साक्षर बनैले
,, क ख स, ह सीखैले- चल बौआ
गिनती सौ तक गिनबैले, अक्षर-अक्षरकेँ मिलबैले
देखि-देखि कऽ नकल करैले
चल-चल चल...।

पढ़मेँ-लिखमेँ साक्षर बनमेँ, नै पढ़मेँ तँ मुरूख कहेमेँ
अखनि नै, पाछू पछतेमेँ, अनपढ़ जीवन गाम हँसेमेँ
चल-चल चल...।
डाक्‍टर आैर इन्‍जीनियर बन, पढ़मेँ-लिखमेँ जँ सदिखन
चल बौआ हाकीम बनैले...।
चल-चल चल...।
स्‍कूलमे सरजी भरपुर, मैडम दीदी सेहो खूब
भोजन किताब मंगनीए भेटै छै, पोशाक पैसा सेहो भेटै छै
चल बौआ तूँ गीत गबैले...।
चल-चल चल...।




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