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Tuesday, September 4, 2012

ओइ दिन - मृदुला प्रधान


मृदुला प्रधान



ओइ दिन 
ओइ दिन..
सभासँ अबैत काल
ओझा भेटलाह,
कहए लगलाह-
मैथिली बजैत छी तँ
मैथिलीमे कि‍अए ने
लिखैत छी?
एतबा सुनितहि
कलम जे सुगबुगाएल से
रुकबाक
नामे नै लैत अछि, किन्तु
बचपनमे सुनल,
दू-चारिटा
शब्दक प्रयोगसँ
की कविता लिखब
संभव थिक?
सएह भाव
जुटाबए लगलौं
डायरीमे,
नाना प्रकारक बात,
कुसियारक खेत
इजोरिया राति,
भानस-घर तँ 
भगजोगनीक बात।
नेना -भुटकाक 
धम-गज्जड़मे
कोइलीक बोली 
सुनए लगलौं,
भिनसरे उठि कऽ
एम्हर-ओम्हर
टहलए लगलौं.....
बटुआमे राखि कऽ
सरोता-सुपारी,
हातामे बैस कऽ
तकैत छी फुलबारी।
सेनुरिया आमक रंग
सतपुतिया बैगनक बारी,
चिनिया
केराक घौड़
गोबरक पथारी।

पाकल छै कटहर,
सोहिजन जुआएल छै,
अड़हुल-कनैल बीच
नेबो गमगमाएल छै।
कविताक बीचमे 
ऐ‍ सबहक की प्रयोजन?
अनर्गल बातसँ
ओझा बिगड़ियो जेताह,
थोड़-बहुत जे
इज्जत अछि,
सेहो उतारि देताह.
गाए, नेरु, कुकुड़, बिलाड़ि‍
सबहक बोलियोक बारेमे
लिखल  जा सकैत छै किन्तु
से सभ,
पढ़एबला चाही,
सौराठक मेलाक
प्रसंग लिखू तँ
बुझएबला चाही।
कखनो हरिमोहन झाक
‘बुच्ची दाइ' आ ‘खट्टर कका' 
बारेमे सोचैत छी तँ
कखनो ‘प्रणम्य-देवता'क चारू
‘विकट-पाहुन’केँ ठाढ़ पबै छी।
कखनो लहेरियासराइक
दोकानमे,
ससुर-जमाए-सारक बीच
कोट लऽ कऽ
तकरार, तँ कखनो होलीक
तरंगमे,
‘अंगरेजिया बाबूक
सिंगार।
सभटा दृश्य,
आँखिक सोझाँ
एखन पर्यन्त
नाचि रहल अछि।
‘कन्यादान 'सँ लऽ कऽ
‘द्विरागमन' तक,
खोजैत चलै छी
कविताक सामग्री,
अंगना, ओसारा, भि‍ंडा, पोखरि
चुनैत चलै छी,
कविताक सामग्री .
शनैः शनैः 
शब्दक पेटारी,
नापि-तोलि कऽ
भरि रहल छी,
जोड़ैत-जोड़ैत 
अइठाम-ओइठाम,
हेर-फेर 
करि रहल छी .
जइ दिन ,
अहाँ लोकनिक समक्ष,
परसै जकाँ किछु 
फुइज जाएत ,
इंजुरीमे लऽ कऽ,
उपस्थित भऽ जाएब,
यदि कोनो भांगठ रहि जाए तँ
हे मैथिल कवि-गण,
पहिनहि 
छमा दऽ दै जाएब। 

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