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Tuesday, September 4, 2012

शिवशंकर सिंह ठाकुर- श्रद्धान्जलि


शिवशंकर सिंह ठाकुर

श्रद्धान्जलि

आइ पुनः आएल ई दिवस अछि,
हमर अहाँक आइ मिलन अछि,
आइयेक दिन हम अहाँ एक सूत्रमे बन्हल रही
प्रेमक फूल अहाँक बाड़ीक
हमर जीवनमे आइ खिलल छल ,
आ हमर मिलन सेहो तँ प्रिय
आजुक पावस दिवसमे
कतेको साल पहिने खिलल छल !!!

कतेक बढ़िया छल ओ दिन
आ अहसास हमर मिलनक,
जखन अग्नि केँ साक्षी मानि कऽ,
हम अहाँ आइये प्रणय-सूत्रमे बन्हल रही,
ओ राति किछु खास छल,
चाँदनी मे नहाएल छल,
हमर अहाँक मिलनक गवाह बनल छल !!!

हम समर्पित भऽ गेल रही अहाँक अंकमे ओइ राति,
आ अहूँ तँ अपना आपकेँ हमरा समर्पित कऽ देने रही
प्रेमक रसमे हम दुहु गोटे सराबोर भऽ गेल रही,
ओइ राति हमर दिल कतेक जोड़ सँ धड़कि रहल छल,
आ धौंकनी जकाँ धधकि रहल छल हमर सम्पूर्ण देह,
घाम सँ लथपथ ,एक दोसराक बाहुपास मे सिमटल रही,
ओइ राति हम हम नै रही,अहाँ अहाँ नै रही,
दुहू गोटा एक भऽ गेल रही !!!

हमर बाड़ीक तीनू फूल आइ पैघ भऽ गेल,
कतेक सुन्दर लागि रहल अइ ,
अहाँ रहितौंह तँ देखितौंह आ हमरा चिकौटी काटितौंह,
ई तीनों तँ अहींक 'प्रेम' गाछक फूल अइ,
एकरा देखबाक खुशी कते पैघ होइत छैक ,
से तँ अहाँ बुझबे करैत छी,
एकरा तँ व्यक्त नै कएल जा सकैछ,
ई तँ अव्यक्त होइत अछि,
आखिर मे ई शरीर तँ सेहो स्थूल भऽ जाइत अछि !!!

आइ अहाँ नै छी तैओ हमरा लगैए,
जे अहाँ किम्हरो सँ हमरा देखि रहल छी,
हमर खुशी आइ अपूर्ण लागि रहल अछि,
तैयो हमर खुशीमे मानू अहाँ अपन खुशी ताकि रहल होइ,
आइ हम कतेक असगर लागि रहल छी,
रहि-रहि अहाँक स्मरणमे कोर काँपि रहल अइ,
हमर मोनक भावना केँ कियो अनुभव कऽ सकैछ ,
हमरा लेल आइयो अहाँ ओतबे स्नेहपूर्ण छी !!!

अहाँ दऽ जखन हम सोचै छी,
अहाँक संग बिताएल एक एक क्षण, एक एक पल
केँ स्मरण कऽ कऽ हम प्रफुल्लित भऽ जाइ छी,
कोना कऽ अनझोके सँ हम अहाँ टकरा गेल रही,
अहाँ कनी बेशी तमसा गेल रही,
ओकर बाद तँ हमर अहाँक भेँट-घाँट होइते रहल,
आ हमर अहाँक प्रेम बढिते गेल,
फेर दुहु गोटे प्रणय -सूत्र मे बन्हि गेलौंह !!!

आजुक ई दिन अति पावन अइ,
आब जखन की अहाँ नै रहलौंह,
हम की करू ,आजुक दिनकेँ कोना कऽ मनाउ,
से नै फुरा रहल अछि,
पहिने तँ दुहु गोटा मिल कऽ आजुक दिनकेँ मनबैत रही,
अही दिन केँ विशेष रूप सँ यादगार बनबैत रही ,

ओतेक हिम्मत आब हमरा नै रहि गेल !!!

हम धीरे धीरे आब टूटऽ लगलौंह अछि ,
आब जखन कखनो अहाँक याद अबै अछि
हम चुप्पे सँ कानि लै छी, फेर बच्चा सभ केँ देख कऽ
अपन काननाइ रोकि लैत छी, मोन मे गबधी मारि लैत छी,
भीतर सँ अशान्ते रहैत छी, मोन मे लललाहा आगि के देखैए?
अहाँ तँ सदिखन हमर मोने मे रहब ,
तैयो आइ अहाँक बहुत याद अबैए ,
अकुलाइतो हम चुप छी ,
बुझाइए जे ई चुप्पी हमर साँसक संगे टूटि पाएत ,
मोनक बात मनहि रहि जाएत,
अपन बात आइ एतहि सम्पन्न करैत छी,
आजुक ई कलम अहींकेँ समर्पित करै छी!!!

हमर ई फूल अहाँ स्वीकार करू,
हमर ई नोर, ईएह श्रद्धांजलि अइ,
गलती केँ माफ करैत ,
एकरा स्वीकार करू !!!


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