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Tuesday, September 4, 2012

कामिनी कामायनी -वसन्त



नाचि रहल व तरंग
नूतन वसंत नूतन वसंत।
व ताल वृन्द व छाग फाग
व गेह देह व पात साग।
व बाट हाट व प्रीत गीत
व लाेभ क्षाेभ व हास्य रूदन
नवनीत रूप व कमल नयन।
मन हर्षित भऽ नितराति कहल
आएल वसंत वका वसंत।
व सखी सखा व मधुर रास
वका सूरूज वका प्रकाश।
व तालमेल व धूर खेल
व जान माल व वृद्ध बाल।
सभ तर मदमातल छै अनंग
व वसंत नूतन वसंत़।
व स्वप्‍न नयनमे उठल उठल
उल्लास हियमे भरल भरल।
रज कणसँ झाँकैत अछि पर्यन्त
वका वसंत वका वसंत।
व कुसुम कली सकुचाए उठल
मदमस्त भ्रमर मडराए रहल
कुहुक काेयलिया गाबि रहल
रस रंग सुधा बरसाय रहल।
अल्हड बसात चलै सनन सनन
मकि उठल नंदन कानन।
आएल गाएल मन माेहि चलल
नूतन वसंत व वसंत।

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